हर-हर महादेव! प्रिय पाठकों
भोल्रेनाथ का आशीर्वाद आप सभी को प्राप्त हो ।
बच्चा गर्भ में क्या सोचता है।
दोस्तों! जैसा कि हम सभी जानते हैं- कि इंसान जन्म लेने से पहले 9 महीने अपनी मां के गर्भ में समय व्यतीत करता है।बच्चा जब मां के गर्भ में पहली बार आता है - तो माँ उस बच्चे की इस मृत्युलोक में आने से पहले ही कई सपने बुनने लगती है।लेकिन क्या आप जानते हैं कि बच्चा अपनी मां के गर्भ में क्या सोचता है और उसे गर्भ में क्या सजा भोगनी पड़ती है?
बच्चा गर्भ में क्या सोचता है। |
अगर नहीं तो इस पोस्ट को अंत तक जरूर पढ़े क्योंकि गरुड़ पुराण में जीवन-मृत्यु, स्वर्ग- नरक ,पाप- पुण्य, मोक्ष पाने के उपाय आदि के साथ यह भी बताया गया है कि शिशु को माता के गर्भ में क्या-क्या कष्ट भोगने पड़ते हैं और वह किस प्रकार भगवान का स्मरण करता है ।शिशु मां के गर्भ में क्या महसूस करता है,उस समय उसके मन एवं मस्तिष्क में क्या-क्या बातें चलती हैं।
तो चलिए दोस्तों ! बिना देरी किये शुरू करते हैं ये आज की कथा।दोस्तों एक बार फिर विश्वज्ञान आपका स्वागत है । धर्मकाण्ड के प्रेतकल्प अध्याये में पक्षीराज गरुड़ भगवान विष्णु से पूछते हैं कि हे प्रभु ! जब कोई आत्मा दूसरा शरीर धारण करने से पहले अपनी मां के गर्भ में होती है तो वह कैसा महसूस करती है। कृपया मुझे विस्तार से बताइए। तब भगवान विष्णु गर्व से कहते हैं।
बच्चा गर्भ में क्या सोचता है। |
हे गरूड़ ! गर्भस्थ जीव को अपने पूर्व जन्मों का ज्ञान रहता है। वह वहां स्मरण करता है की आयु के समाप्त होने पर शरीर का परित्याग करके अब मैं मलादी में रहने वाले छोटे छोटे-छोटे क्रीमीय कीटाणुओं की एक विशेष योनि में स्थित हूं । पहले में सरक कर चलने वाले सर्प की योनि में पहुंचा। फिर मच्छर हो गया था। उसके बाद चार पैरों वाला अब्र या वृषभ नामक पशु बन गया था ।अथवा जंगली शूकर की योनि में प्रवेश था ।इस प्रकार गर्भ में रहते हुए उस जीवआत्मा को पूर्ण ज्ञान रहता है ।
बच्चा गर्भ में क्या सोचता है। |
किंतु जन्म लेते ही वह तत्काल उसे भूल जाता है।उसे याद आता है कि मैं दूसरे को छलने का विचार करता रहा। मैंने शरीर की रक्षा के लिए धर्म का परित्याग करके छल,कपट और चोर वृति का आश्रय लिया। फिर गर्भस्थ जीव को याद आता है कि उसने अपने पिछले जन्म में अत्यंत कष्ट से स्वयं लक्ष्मी को ऐकत्र किया था किंतु अभिलासित धन का उपयोग नहीं कर सका और अग्नि देव अतिथि और बंधु बांधव को स्वादिष्ट फल तथा ताम्बुल दे करके उन्हें संतुष्ट करने में असफल रहा ।
बच्चा गर्भ में क्या सोचता है। |
बच्चा गर्भ में क्या सोचता है। |
जब ऐसी चिंता गर्भस्थ जीव करता है तब यमदूत उसे कहते हैं कि हे देह धारेण जैसा तुमने किया है उसके अनुसार अपना निस्तार करो। फिर मां के गर्भ में पल रहा जीव स्मरण करता हुआ अपने को कोसते हुए कहता है कि तुमने अपनी कमाई से जो धन अर्जित किया था उसमें से किसी को दान नहीं दिया । पृथ्वी पर रहते हुए तुमने भूमि दान ,गोदान ,जल दान ,फलदान ,तांबूल दान अथवा गंध दान भी नहीं किया। तो अब भला क्या सोच रहे हो ।
बच्चा गर्भ में क्या सोचता है। |
तुम्हारे पिता और पितामह मर गए। जिसने तुमको अपने गर्भ में धारण किया वह तुम्हारी माता भी मर गई। तुम्हारे सभी बंधु भी नहीं रहे । ऐसा तुमने देखा है तुम्हारा पांच भौतिक शरीर अग्नि में जलकर भस्म हो गया ।तुम्हारे द्वारा एकत्र किया गया संपूर्ण धन धान्य पुत्रों ने हस्तगत कर लिया। जो कुछ तुम्हारा सुभाषित है और जो कुछ तुमने धर्म संचय किया है वह तुम्हारे साथ है। इस पृथ्वी पर जन्म लेने वाला राजा हो अथवा सन्यासी या कोई श्रेष्ठतम ब्राह्मण हो मरने के बाद पुनः आया हुआ नहीं दिखाई देता है।
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बच्चा गर्भ में क्या सोचता है। |
जो भी इस धरातल पर जन्म लेता हैं ,उसकी मृत्यु निश्चित है और इसके बाद वह विलाप करने लगता है और वह भगवान से प्रार्थना करता है । हे प्रभु !जब जन्म के बाद मुझे पुनः मृत्यु को ही प्राप्त होना है तो फिर मेरा जन्म क्यों हो रहा है । अगर संभव हो तो मुझे जीवन मृत्यु के चक्र से मुक्त करिए। गरुड़ पुराण के अनुसार फिर माता के गर्भ में पल रहा शिशु भगवान से कहता है कि मैं गर्भ से अलग होने की इच्छा नहीं करता क्योंकि बाहर जाने से पापकर्म करने पड़ते हैं जिससे नरक आदि प्राप्त होते हैं ।
बच्चा गर्भ में क्या सोचता है। |
इस कारण बड़े दुख से व्याप्त हूं। फिर भी दुख से रहित हो आपके चरण का आश्रय लेकर मैं आत्मा का संसार से उद्धार कर लूंगा। माता के गर्भ में पूरे 9 महीने शिशु भगवान से प्रार्थना ही करता है। लेकिन यह समय पूरा होते ही जब प्रसूति के समय वायु से तत्काल बाहर निकलता है तो उसे कुछ भी याद नहीं रहता ।
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विज्ञान के अनुसार मां के गर्भ से बाहर आने वाले शिशु को काफी पीड़ा का सामना करना पड़ता है।जिससे बच्चे के मस्तिष्क पर जोर पड़ता है। शायद यही कारण है कि उसे कुछ भी याद नहीं रहता।
बच्चा गर्भ में क्या सोचता है। |
लेकिन गरुड़ पुराण के अनुसार प्रसूति की हवा से जैसे ही श्वास लेता हुआ शिशु माता के गर्भ से बाहर निकलता है तो उसे किसी बात का भी ज्ञान नहीं रहता। गर्भ से अलग होकर वह ज्ञान रहित हो जाता है। इसी कारण जन्म के समय वह रोता है।
इन सबके अलावा गरुड़ पुराण में भगवान विष्णु ने यह भी बताया है कि जब शिशु गर्भ में 6 माह का हो जाता है तो वह भूख प्यास को महसूस करने लगता है। और माता के गर्भ में अपना स्थान बदलने के लायक भी हो जाता है। तब वह कुछ कष्ट भी भोक्ता है।
बच्चा गर्भ में क्या सोचता है। |
माता जो भी खाने के रूप में ग्रहण करती है ।वह उसकी कोमल त्वचा से होकर गुजरता है और इन कष्टों के कारण कई बार शिशु माता के गर्भ में ही बेहोश हो जाता है। 6 मास के बाद शिशु का मस्तक नीचे की ओर और पैर ऊपर हो जाते हैं ऐसी स्थिति में वह चाहकर भी इधर-उधर हिल डुल नही सकता ।
वह खुद को एक पिंजरे में बंद पक्षी की तरह महसूस करता है। ऐसे में शिशु ईश्वर की स्तुति करने लगता है और कहता है कि हे लक्ष्मीपति!, हे जगदाधार !संसार को पालने वाले भगवान विष्णु का मैं शरणागत होता हूँ। हे भगवान मैं इस योनि से अलग हो तुम्हारे चरणों का स्मरण कर फिर ऐसे उपाय करूंगा जिससे मैं मुक्ति को प्राप्त कर सकूं।
बच्चा गर्भ में क्या सोचता है। |
इसके बाद अपने आसपास गंदगी देख फिर दुबारा भगवान से प्रार्थना करता है और कहता है कि -भगवान मुझे कब बाहर निकालोगे ।सभी पर दया करने वाले ईश्वर ने मुझे यह ज्ञान दिया है ।मैं उस ईश्वर की शरण में जाता हूं।इसलिए मेरा पुनः जन्म मरण होना उचित नहीं है और अंत में भगवान विष्णु पक्षीराज गरूड़ से कहते हैं कि -
यही कारण है कि गर्भ में पहुंचकर जो जीवात्मा जैसा चिंतन करता है शरीर धारी वैसा ही जन्म लेकर बालक, युवा और वृद्ध होता है। यदि गर्भ में सोची गई बात सांसारिक के व्यहमोह के कारण विस्मृत हो जाती है तो पुनः मृत्यु काल में उसकी याद आ जाती है। यदि शरीर के नष्ट होने पर वह हृदय में ही रह गई है तो पुनः गर्भ में जाने पर उसका स्मरण होना निश्चित है।
बच्चा गर्भ में क्या सोचता है। |
प्रिय पाठकों! हम आशा करते हैं- कि आपको हमारी यह पोस्ट पसंद आई होगी । आपको जानकारी कैसी लगी। आप कमेंट करके अवश्य बतायें।
इसी के साथ हम अपनी बात को यही समाप्त करते है।और भोलेनाथ जी से प्रार्थना करते हैं कि वह आपके जीवन को मंगलमय बनाये।
धन्यवाद ।