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शिव पंचाक्षर स्तोत्र की महिमा
शिव पंचाक्षर स्तोत्र का अर्थ
पंचाक्षरी स्तोत्र के लाभ
शिव पंचाक्षर स्तोत्र संस्कृत में
शिव पंचाक्षर स्तोत्र केवल हिंदी में
रचनाकार - श्री मच्छङ्कराचार्यजी
शिव पंचाक्षर स्तोत्र की महिमा
प्रिय पाठकों !दुनिया में दो मन्त्र ऐसे है ,जो पूरी तरह से जीवन को बदल देते है। और ये दोनों मन्त्र ऐसे है जो मनुष्य को मोक्ष तथा मुक्ति प्रदान करते है। पहला है गायत्री मन्त्र और दूसरा है भगवान् शिव का पंचाक्षरी मन्त्र। यानी की नमः शिवाय। आज हम जानेंगे पंचाक्षरी मन्त्र के बारे में की इसकी महिमा क्या है और क्यों मोक्ष व मुक्ति प्रदान करता है।
दोस्तों! नमः शिवाय भगवान् शिव का पंचाक्षरी मन्त्र है , ॐ नमः शिवाय नहीं । अधिकतर लोगों को ये दुविधा होती है की ॐ नमः शिवाय पंचाक्षरी मन्त्र है,जबकि ये षडाकसी मन्त्र है।
नमः शिवाय -पंचाक्षरी मन्त्र है।
ॐ नमः शिवाय -ये षडाकसी मन्त्र है।
शिव उपासना के लिए सबसे महत्वपूर्ण है ये पांच अक्षर - नमः शिवाय यानी पहला न ,दूसरा म ,तीसरा शि ,चौथा व और पांचवाँ य।
दोस्तों भगवान् शिव सृष्टि के नियंत्रक है। और आगम शास्त्र कहता है कि शिव से ही सृष्टि निकलती है और शिव में ही सृष्टि का विलय हो जाता है। भगवान् की रचाई हुई ये सृष्टि पांच तत्वों से मिल कर बनी है। पृथ्वी ,जल ,अग्नि ,वायु और आकाश। नमः शिवाय के जो पांच अक्षर है ,आप उनसे सृष्टि के पांचो तत्वों को नियंत्रित कर सकते है। क्योकि हर अक्षर का अपना महत्व है और हर अक्षर का अपना अर्थ है।
जब आप इन पांचो अक्षरों को मिलाकर जप करते है ,तो आप सृष्टि पर नियंत्रण कर सकते है। प्रिय पाठकों !वैसे तो शिव का नाम ही महामंत्र है इसलिए हर मनुष्य इसे पढ़ सकता है ,बोल सकता है। लेकिन पांच अक्षरो को मिलाकर जप करने से , सही तरिके से उपयोग करके आप सृष्टि को नियंत्रित तो कर ही सकते है साथ ही जीवन की जो भी इच्छा ,अभिलाषा हो ,उन सभी उपलब्धियों को पा सकते है।
शिव पंचाक्षर स्तोत्र - नमः शिवाय का अर्थ
पहला अक्षर - न
इसका अर्थ नागेंद्र से है अथार्त नागों को धारण करने वाले। न का दूसरा अर्थ है जो निरंतर शुद्ध रहता हो अथार्त शिव रहते तो शमशान में है ,लपेटते तो भस्म है लेकिन फिर भी शिव परम शुद्ध है , परम चेतना का नाम ही है शिव।
दोस्तों जब आप न अक्षर का प्रयोग करते है तो जाने -अनजाने आप दसों दिशाओं से सुरक्षित हो जाते है। कहने का तात्पर्य है कि न अक्षर सुरक्षा प्रदान करता है।
दूसरा अक्षर - म
इसका अर्थ मंदाकिनी (गंगा ) को धारण करने से है। म अक्षर का दूसरा अर्थ महाकाल और महादेव से भी है अथार्त नदियों ,पर्वतों और पुष्पों को नियंत्रित करने के कारण इस अक्षर का प्रयोग हुआ। कहने का तात्पर्य है कि -ये म अक्षर प्रकर्ति को नियंत्रित करता है। इसके अलावा सांख्य दर्शन भी कहता है कि प्रकृति सृष्टि को सबकुछ देती है।
म अक्षर प्रकृति की शक्तियों को नियंत्रित करता है। म अक्षर जल तत्व को नियंत्रित करता है। जो लोग ज्यादा इमोशनल होते है इस नमः शिवाय के मः अक्षर के उच्चारण से उनकी भावनात्मक समस्याएं दूर हो जाती है।
तीसरा अक्षर है शि -
इसका अर्थ शिव द्वारा शक्ति को धारण करने से है। अथार्त शिव शक्ति को धारण करते है। यदि आप शि शब्द को देखे तो उसमे जो ि की मात्रा है वो शक्ति है। यदि उसमे से इस ि को हटा दे तो बन जायेगा शव। शव यानी जिसके शरीर में प्राण न हो। कहने का तात्पर्य है की शिव के अंदर जो ि की मात्रा है ,वही शक्ति है। शिव और शक्ति ही मिलकर ईश्वर का निर्माण करते है।
शिव शक्ति के बिना अधूरे है और शिव शक्ति को धारण करते है। इसलिए इस अक्षर को परम कल्याणकारी अक्षर माना जाता है।
इस अक्षर से जीवन में अपार सुख -शान्ति की प्राप्ति होती है और शिव के साथ -साथ शक्ति की कृपा भी प्राप्त होती है।
चौथा अक्षर है - व
इसका अर्थ शिव के मस्तक के त्रिनेत्र से है। हम सभी शिव के तीसरे नेत्र के बारे में जानते है। त्रिनेत्र का अर्थ है पावर। भगवान् शिव सृष्टि को नियंत्रित करते है ,इस बात की सुचना भगवान् शिव के तीसरे नेत्र से मिलती है। कहने का तात्पर्य है की व अक्षर भगवान् के तीसरे नेत्र के बारे में बताता है।
ये अक्षर शिव जी के प्रचंड स्वरुप को दर्शाता है। सूर्य ,चन्द्रमा और अग्नि भगवान् के त्रिनेत्र के समान है ऐसा इस श्लोक में बताया गया है। व अक्षर इस बात को दर्शाता है की भगवान् शिव के अंदर प्रचंड शक्ति है ,प्रचंड ताकत है और तीसरे नेत्र के द्वारा वो सृष्टि को नियंत्रित करते है। व अक्षर के प्रयोग से मनुष्य अपने ग्रहो और नक्षत्रों को नियंत्रित कर सकता है।
जब मनुष्य नमः शिवाय में व अक्षर का उच्चारण करता है तो वह जाने -अनजाने ग्रहों को कंट्रोल कर पाता है।
पांचवा अक्षर है - य
इस अक्षर का अर्थ है आदि ,अनंत और अनादि। अथार्त भगवान् शिव ही आदि ,अनंत और अनादि है। जब सृष्टि नहीं थी -भगवान् शिव तब भी थे। अब सृष्टि है तो भी भगवान् शिव है और ये सृष्टि जब तक रहेगी -तब तक भगवान् शिव रहेंगे। कहने का तात्पर्य है की शिव ही ,आदि ,अनत और अनादि है।
य अक्षर सम्पूर्णता का अक्षर है। य अक्षर बताता है की दुनिया में शिवस्व नाम मातरम् अथार्त दुनिया में केवल शिव का ही नाम है ,शिव सर्वव्यापक है , शिव ही चारों ओर विद्यमान है ,करुणा ,कृपा ,दंड और आनंद में केवल शिव ही शिव है।
इस अक्षर के प्रयोग से ,उच्चारण से मनुष्य को शिव की कृपा प्राप्त होगी।
तो प्रिय पाठकों ! ये थे पंचाक्षरी शब्द के अर्थ। इस पंचाक्षरी शब्द में एक जादू है, एक शक्ति है ,हर अक्षर में एक ताकत है।श्री आदि मच्छङ्कराचार्यजी ने इसकी रचना की ,स्तुति कीऔर उन्होंने बताया की इस पंचाक्षरी स्तोत्र नमः शिवाय के अक्षरों में एक विशेष प्रकार की शक्ति विद्यमान है।
पंचाक्षरी स्तोत्र के लाभ
विवाह ,करियर ,स्वास्थ ,जीवन आदि की कोई भी इच्छा हो वो इस पंचाक्षरी स्तोत्र द्वारा पूर्ण की जा सकती है।
पंचाक्षरी स्तोत्र से भगवान् शिव की कृपा प्राप्त होती है।
पंचाक्षरी स्तोत्र से मन की समस्या दूर हो जाती है। खासतौर से जिन्हे डिप्रेशन होता है ,अवसाद की समस्या होती है उन्हें पंचाक्षरी स्तोत्र से लाभ प्राप्त होता है।
शिव पंचाक्षर स्तोत्र संस्कृत में
नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय भस्माङ्गरागाय महेश्वराय ।
नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय तस्मै न काराय नमः शिवाय
मन्दाकिनीसलिलचन्दनचर्चिताय नन्दीश्वरप्रमथनाथमहेश्वराय ।
मन्दारपुष्पबहुपुष्पसुपूजिताय तस्मै म काराय नमः शिवाय
शिवाय गौरीवदनाब्जबृंदा सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय ।
श्रीनीलकण्ठाय वृषध्वजाय तस्मै शि काराय नमः शिवाय
वशिष्ठकुम्भोद्भवगौतमार्यमूनीन्द्र देवार्चिता शेखराय ।
चन्द्रार्कवैश्वानरलोचनाय तस्मै व काराय नमः शिवाय
यज्ञस्वरूपाय जटाधराय पिनाकहस्ताय सनातनाय ।
दिव्याय देवाय दिगम्बराय तस्मै य काराय नमः शिवाय
पञ्चाक्षरमिदं पुण्यं यः पठेच्छिवसंनिधौ ।
शिवलोकमावाप्नोति शिवेन सह मोदते
।। इति श्रीमच्छङ्कराचार्यविरचितं शिवपंचाक्षर स्तोत्रम सम्पूर्णम ।।
शिव पंचाक्षर स्तोत्र केवल हिंदी में
वे जिनके पास साँपों का राजा उनकी माला के रूप में है, और जिनकी तीन आँखें हैं, जिनके शरीर पर पवित्र राख मली हुई है और जो महान प्रभु है, वे जो शाश्वत है, जो पूर्ण पवित्र हैं और चारों दिशाओं को जो अपने वस्त्रों के रूप में धारण करते हैं,
उन शिव को नमस्कार है , जिन्हें शब्दांश “न” द्वारा दर्शाया गया है।
वे जिनकी पूजा मंदाकिनी नदी के जल से होती है और चंदन का लेप लगाया जाता है, वे जो नंदी के और भूतों-पिशाचों के स्वामी हैं, महान भगवान, वे जो मंदार और कई अन्य फूलों के साथ पूजे जाते हैं,
उन शिव को प्रणाम है , जिन्हें शब्दांश “म” द्वारा दर्शाया गया है।
वे जो शुभ है और जो नए उगते सूरज की तरह है, जिनसे गौरी का चेहरा खिल उठता है, वे जो दक्ष के यज्ञ के संहारक हैं, वे जिनका कंठ नीला है, और जिनके प्रतीक के रूप में बैल है,
उन शिव को नमस्कार है , जिन्हें शब्दांश “शि” द्वारा दर्शाया गया है।
वे जो श्रेष्ठ और सबसे सम्मानित संतों – वशिष्ट, अगस्त्य और गौतम, और देवताओं द्वारा भी पूजित है, और जो ब्रह्मांड का मुकुट हैं, वे जिनकी चंद्रमा, सूर्य और अग्नि तीन आंखें है ,
उन शिव को नमस्कार है , जिन्हें शब्दांश “वा” द्वारा दर्शाया गया है
वे जो यज्ञ (बलिदान) का अवतार है और जिनकी जटाएँ हैं, जिनके हाथ में त्रिशूल है और जो शाश्वत हैं, वे जो दिव्य हैं, जो चमकीला हैं, और चारों दिशाएँ जिनके वस्त्र हैं,
उन शिव को नमस्कार है , जिन्हें शब्दांश “य” द्वारा दर्शाया गया है।
जो शिव के समीप इस पंचाक्षर का पाठ करते हैं,
वे शिव के निवास को प्राप्त करते है और आनंद लेते है।
इस प्रकार श्रीमच्छङ्कराचार्यविरचित शिवपंचाक्षर स्तोत्र सम्पूर्ण