हर -हर महादेव
जो मनुष्य ऐसे आज़ाद ,मुक्त मन को अपने वश में कर ले ,तो फिर वह मनुष्य सिर्फ मनुष्य नहीं रह जाता ,वह एक महानआत्मा ,महानपुरूष बन जाता है। वह जीवन में कभी नहीं भटकता। उसके रास्ते खुद बखुद बनते चले जाते है।
इस पोस्ट में आप पाएंगे
मानव शरीर का संचालन
मन अमर है
मन का डर
मन कैसा होना चाहिए
मन संतुष्ट होता है आध्यात्म से
मन के लिए शास्त्र उपदेश
मानव शरीर की पांच खिड़कियां
मन को कैसे जीते
मानव शरीर का संचालन
प्रिय पाठकों ! हमारे इस मानव शरीर का संचालन पंच प्राण ,दस इन्द्रियाँ ,पंच विषय और चार अन्तः करण द्वारा होता है। मनुष्य में मौज़ूद उसकी आत्मा की ऊर्जा शक्ति ने सभी को उनके अपने -अपने कार्य सौप रखे है।
जिसमे की आध्यात्म की ज्योति का तार उन्होंने (ऊर्जा ने ) मन के हांथो में सौंप रखा है। दोस्तों ! आत्मा की ऊर्जा शक्ति ने मन को ही ये काम क्यों सौंपा ? क्या आप जानना चाहते है ? आइये जाने -
मन अमर है
दोस्तों प्रभु का दिया ये शरीर समय के साथ -साथ बदलता रहता है। मनुष्य एक बच्चे के रूप में जन्म लेता है , फिर किशोरावस्था में पहुँचता है,फिर युवावस्था में और उसके बाद वृद्ध यानी बुढ़ापे की अवस्था में।
इन चारों अवस्थाओं में परिवर्तन होते -होते हमारा ये शरीर बूढ़ा हो जाता है ,कमजोर हो जाता ,शरीर का हर अंग काम करने में असमर्थ हो जाता है--
लेकिन ये मन --ये मन कभी कमज़ोर नहीं होता ,कभी बूढ़ा नहीं होता , काम करते -करते ये शरीर तो थक जाता है ,पर ये मन कभी नहीं थकता। शरीर को तो नींद आ जाती है,लेकिन मन को कभी नींद नहीं आती।
शरीर में मौजूद इन्द्रियाँ शिथिल हो जाती है पर मन कभी शिथिल नहीं होता। दोस्तों !मन एक ऐसा पात्र (बर्तन )है जिसने अनेक संवेदनाओ को अपने अंदर समेट रखा है।
अनंत प्रकार की कल्पनाओं और इच्छाओं के भरे घोड़े पर सवार होकर इन दसों दिशाओं में आज़ाद होकर घूमने वाला ,एक ऐसा वीर पुरुष है ,जो दिखाई तो नहीं देता पर बहुत ही शक्तिशाली होता है।
जो सुख दुःख से आत्मा को प्रभावित तो करता है ,पर खुद कभी उन बंधनों में नहीं फंसता। ये मन हमेशा आज़ाद रहता है।
जो मनुष्य ऐसे आज़ाद ,मुक्त मन को अपने वश में कर ले ,तो फिर वह मनुष्य सिर्फ मनुष्य नहीं रह जाता ,वह एक महानआत्मा ,महानपुरूष बन जाता है। वह जीवन में कभी नहीं भटकता। उसके रास्ते खुद बखुद बनते चले जाते है।
मन का डर
दोस्तों एक छूत (का रोगी था। वह हॉस्पिटल गया। डॉक्टर ने उसे एडमिट कर लिया,दवा दी और रोगोयों की सेवा करने वाले कुछ व्यक्तियों को उसकी देखभाल के लिए उसके पास छोड़ कर शाम को अपने घर चले गए। कितने अचम्भे की बात है कि उस छूत के रोगी को छूने और उनके पास बैठने पर भी उन लोगों को कुछ नहीं हुआ।
अब वही अगले दिन कुछ व्यक्तियों को उस रोगी पास ये कह कर रखा गया की ये छूत का रोगी है और आज रात तुम्हे इनकी देखभाल करनी है। और इस बात का ध्यान रखना की कही तुम्हे छूत न लग जाए। बस इसी डर से की कहीं उन्हें छूत न लग जाये ,वो सवेरा होने तक रोगी बन गए।
मन कैसा होना चाहिए
कहने का मतलब है की मन यदि बलवान है तो वह मनुष्य को बलवान बना देता है और यदि मन कमज़ोर होगा तो वह मनुष्य को कमज़ोर बना देता है। मन के जीतने से ही जीत होती है और मन के हारने से हार। इन्द्रियों के साथ मन की मित्रता को तोड़ कर ,बल से नहीं बल्कि चतुराई से काम लेना चाहिए।
मन को किसी पर निर्भर रहने की आवश्यकता नहीं होती। वो तो आज़ाद है , जहाँ मर्जी आ सकता है ,जहाँ मर्जी जा सकता है। पर जब यही मन संसार के बंधनो में बंध जाताहै , उनसे मोह करने लगता है भौतिक संसाधनों को पाने की इच्छा करने लगता है ,तो उस वक़्त वो ये सोचता है की उसे सुख की प्राप्ति होगी लेकिन वास्तव में वह दुखो के करीब जा रहा होता है।
मन संतुष्ट होता है आध्यात्म से
दोस्तों वास्तविक सुख तो आध्यात्म की राह में है क्योकि उस राह में हमे कुछ मिले या न मिले पर शान्ति जरूर मिलती है ,मन संतुष्ट रहता है। खुश रहता है ,आध्यात्म की राह पर चलने से सिर्फ सुख नहीं मिलता ,बल्कि सुखो की खान (भगवान् )मिलते है,और जिसे अगर भगवान मिल जाए तो क्या उसे जीवन में कोई परेशानी हो सकती है।
हाँ-इतना तो हो सकता कि जीवन के उतार चढ़ावो से उसे कष्ट हो ,परेशानी हो ,पर हमेशा कष्टदाई रहें ,परेशान रहे ये नहीं हो सकता क्योकि जो मनुष्य भगवान् की शरण में रहते है उनके जीवन की नाव हिल -डुल तो सकती है पर कभी डूब नहीं सकती।
पर ये मन है न -ये कभी भी ऐसे व्यक्तियों के साथ रहना पसंद नहीं करता जिससे उसे कुछ सीख मिले ,उसे इस सुख की प्राप्ति हो सकें। ऐसी ख़ुशी ,ऐसा सुख तो संत ,महात्मा ,गुरु और भगवान् को मानने वाले व्यक्तियों के साथ रहने से मिलता है।
ऐसे लोगों के बीच में रहने से मन से बुरे विचार अपने आप निकल जाते है और मन ऐसा संकल्प करने लगता है की जिससे उसे भगवत प्राप्ति हो जाये ,वो उन्हें महसूस करने लगे। दोस्तों !मन का कोई रूप नहीं होता।
वो ( मन )जिसके बारे में सोचता है उसी का रूप धारण कर लेता है अथार्त जैसे व्यक्तियों के साथ रहोगे वैसी ही छवि प्राप्त करोगे।अच्छों के साथ रहोगे तो अच्छे बनोगे ,बुरे के साथ बुरे ,हत्यारो के साथ हत्यारे और आतंकियों के साथ आतंकवादी।
मन के लिए शास्त्र उपदेश
शास्त्रों में लिखा है कि भगवान् ने कहा है की मन में जो -जो विषय (बुरे विचार )आकर भर जाते है वो सब इन्द्रियों के जरिए आते है। इसलिए मनुष्य को अपने आँख ,कान ,नाक ,जीभ आदि इन्द्रियों को नियम के अधीन रख कर काम लेना चाहिए। और मनुष्य ये तभी कर पायेगा ,जब वह अपने मन को मजबूत बना ले ,उसे निरोगी बना ले।
इसके लिए आध्यात्म ही एक मात्र सहारा है। क्योकि मन इतना चंचल होता है कि वो एक जगह ठहरता ही नहीं। मन अच्छे कर्मो से हमेशा पीछे भागता है। मन को न तो मंदिर जाना अच्छा लगता है ,न नियम -धर्म का पालन करना ,न कथा सुनना ,न व्रत आदि करने का।
ऐसा करने के लिए मन को एक जगह एकाग्रचित करना पड़ता है। जब मन मानसिक रूप से तैयार हो तभी मन को आध्यात्म की राह पर ले जाया जा सकता है।
मानव शरीर की पांच खिड़कियां
प्रिय पाठको ! ये सभी सांसारिक वर्षाऋतु की पैदावार है। जिसमे ये मन एक दीपक की तरह है ,जो इन्द्रियों रुपी सभी खिड़कियों से बाहर झाँकता रहता है और विषयों को अपने अंदर खीच लेता है।
इस तरह हम अनगिनत अशुभ जीव -जंतु यानी बुरे लोगों के बीच घिर जाते है। पता चलने पर असहाय हो जाते है और बचने के लिए तड़पते रहते है।
मन को कैसे जीते
दोस्तों ! शरीर की इन इन्द्रियों को खुला रख कर हम चैन से नहीं सो सकते। इन्हे बंद करना बहुत जरूरी है। इसलिए पहले अपने मन से बाहर के विषयो को दूर करे और दोबारा ये मन पर हावी न हो इसके लिए इस पर कड़ा पहरा रखे अथार्त धैर्य का पालन करे।
अपने मन में अच्छे -अच्छे विचार लाये ,अच्छे लोगो के साथ उठे -बैठे, विद्वान संतों का संग प्राप्त करे। जैसे हम इस बाहर की गंदगी को साफ करते है वैसे ही इस मन की गंदगी को भी साफ करना चाहिए बाहर की बुराइयों से जीत कर ही हम अपने मन को जीत सकते है। अपितु नहीं
अब मन कैसे साफ होगा ?,मन की गंदगी क्या होती है ? जब ये पता होगा तभी तो मन साफ होगा। दोस्तों !मन की गंदगी यानी व्याकुलता ,किसी के प्रति घृणा रखना ,क्रोध होना ,लालच या वासना ,दूसरो का बुरा चाहना आदि ये सभी मन की गंदगी होती है।
और ऐसा नहीं है की मनुष्यो को इसके बारे में पता नहीं होता -पता होता है फिर भी इसे अनदेखा कर देते है और धीरे -धीरे ये गंदगी मन पर पर हावी हो जाती है ,फिर चाह कर भी नहीं निकलती।
इसलिए इसे मन पर हावी न होने दे ,अपने व्यहार में सुधार लाये। दूसरो का बुरा करने से ,चाहने से खुद का ही बुरा होता है।इसलिए हमेशा खुश रहें और औरो को भी खुश रहने दें।
प्रिय पाठकों!आशा करते हैं कि आपको पोस्ट पसंद आई होगी।इसी के साथ हम अपनी वाणी को विराम देते है और भगवान भोलनाथ से प्रार्थना करते है की वो आपके जीवन को मंगलमय बनाये और आपके मन को शुद्ध रखे, बुरे विचारो को मन में न आने दे। विश्वज्ञान में अगली पोस्ट के साथ फिर मुलाकात होगी।तब तक के लिए हर- हर महादेव ।
धन्यवाद