जय -जय श्री राधे श्याम
हर हर महादेव !प्रिय पाठकों,
कैसे है आप लोग आशा करते है आप ठीक होंगे।
भगवान शिव आपका कल्याण करें और हमेशा आप पर प्रसन्न रहें।
इस पोस्ट में आप पाएंगे -
गोपिकाओ ने देवी दुर्गा से क्या वर माँगा ?
गोपियों ने कृष्ण को पाने के लिए कितने महीने पूजा की ?
गोपियों का चीर हरण
गोपियों से क्या अपराध हुआ था ?
गोपियों के मनोभाव का वर्णन
गोपियों से श्री कृष्ण का वादा
यहां जो प्रश्न उठा की उन्होंने गोपियों के वस्त्र क्यों चुराए ?
गोपिकाओं को नग्न अवस्था में बाहर आने के लिए क्यों कहा और अगर कहा तो क्या गोपिकाओं का नग्न अवस्था में बाहर आना ठीक था ?
लेखक के अनुसार
वैदिक सभ्यता के. अनुसार दस से चौदह वर्ष तक की कुमारियों को अच्छे पति की प्राप्ति के लिए या तो शिव की या फिर देवी दुर्गा की पूजा करनी होती है। किन्तु वृन्दावन की कुमारियाँ तो पहले से ही कृष्ण के सौन्दर्य के प्रति आकृष्ट थीं।
वे हेमन्त ऋतु (शीत ऋतु के पूर्व) के प्रारम्भ में देवी दुर्गा का पूजन किया करती थीं। हेमन्त का पहला मास अग्रहायण (अक्टूबर-नवम्बर) है और इस मास में वृन्दावन की सारी कुमारी गोपिकाएँ व्रत रखकर देवी दुर्गा की पूजा करने लगीं।
सर्वप्रथम उन्होंने (हविष्यान्न) ग्रहण किया, जिसे मूंग की दाल तथा चावल में कोई मसाला या हल्दी डाले बिना उबाल कर तैयार किया जाता है। वैदिक आदेश के अनुसार कोई भी अनुष्ठान करने के पूर्व शरीर को शुद्ध करने के लिए ऐसे भोजन की संस्तुति की जाती है।
वृन्दावन की सारी कुमारी गोपियाँ यमुना नदी में नित्य प्रातः स्नान करके देवी कात्यायनी की पूजा करती थीं। कात्यायनी देवी दुर्गा का ही दूसरा नाम है। इस देवी की पूजा यमुना की बालू (रेत )से प्रतिमा बनाकर की जाती है।
वैदिक शास्त्रों में संस्तुति की गई है कि अर्चाविग्रह की रचना विभिन्न प्रकार के पदार्थों से की जा सकती है। इसे रँगा जा सकता है, इसे धातु, रत्न, काष्ठ, मिट्टी या पत्थर से बनाया जा सकता है या फिर पूजने वाला अपने हृदय के भीतर उसका चिन्तन कर सकता है।
मायावादी चिन्तकों के अनुसार ये सारे अर्चाविग्रह काल्पनिक हैं, किन्तु वैदिक साहित्य में इन्हें वास्तव में परमेश्वर या विभिन्न देवताओं के समरूप माना जाता है।
गोपिकाओ ने देवी दुर्गा से क्या वर माँगा ?
सारी कुमारी गोपिकाएँ देवी दुर्गा का अर्चाविग्रह तैयार करके चन्दन लेप, माला, धूप, दीप तथा फल, अन्न तथा पौधों की शाखाओं जैसी भेंटें चढ़ाकर पूजा करतीं थीं। पूजा के बाद वरदान माँगने की प्रथा है।
ये कुमारिकाएँ देवी कात्यायनी की पूजा अत्यन्त भक्तिपूर्वक करतीं और उन्हें इस प्रकार सम्बोधित करतीं "हे भगवान् की परम बहिरंगा शक्ति! हे परम योगशक्ति!
हे जगत की परम नियन्ता ! हे देवी! आप हम पर दयालु हों और नन्द महाराज के पुत्र कृष्ण से हमारा विवाह कराने की व्यवस्था करें!" सामान्यतः वैष्णवजन किसी देवता को नहीं पूजते ।
श्रील नरोत्तमदास ठाकुर ने उन लोगों को, जो विशुद्ध भक्ति में अग्रसर होना चाहते हैं, देवताओं की पूजा करने से नितान्त मना किया है। फिर भी गोपियाँ, जिनका कृष्ण-प्रेम अद्वितीय है, दुर्गा की पूजा करती थीं।
देवताओं की पूजा करने वाले कभी-कभी उल्लेख करते हैं कि गोपियाँ भी देवी दुर्गा की पूजा करती थीं, किन्तु हमें गोपियों का मन्तव्य समझना चाहिए। सामान्य रूप से लोग किसी भौतिक वरदान के लिए देवी दुर्गा की पूजा करते हैं,
किन्तु यहाँ तो गोपियाँ देवी से भगवान् कृष्ण की पत्नियाँ बनने का वरदान माँगती थीं। कहने का तात्पर्य यह कि यदि हमारे कर्म का केन्द्रबिन्दु कृष्ण हो, तो अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए भक्त किसी भी साधन को अपना सकता है।
गोपियों ने कृष्ण को पाने के लिए कितने महीने पूजा की ?
गोपियाँ कृष्ण की सेवा करने या उन्हें प्रसन्न करने के लिए कोई भी साधन अपना सकती थीं। यह गोपियों की सर्वोत्कृष्ट विशेषता थी। उन्होंने कृष्ण को पति रूप में प्राप्त करने के लिए पूरे एक मास तक देवी दुर्गा की पूजा की।
वे प्रतिदिन नन्द महाराज के पुत्र कृष्ण को अपना पति बनाने के लिए प्रार्थना करतीं। ये गोपियाँ बड़े सवेरे यमुना के तट पर स्नान करने जातीं। ये वहाँ एकत्र होतीं और एक दूसरे का हाथ पकड़ कर कृष्ण की अद्भुत लीलाओं का उच्च स्वर में गान करतीं।
गोपियों का चीर हरण
भारत की युवतियों तथा स्त्रियों में यह पुरानी प्रथा है कि जब वे नदी में स्नान करती हैं, तो वे अपने सारे वस्त्र किनारे पर रख देती हैं और तब पूर्णतया नग्न होकर जल में डुबकी लगाती हैं, अतः नदी के जिस भाग में वे स्नान करती हैं वहाँ पुरुषों के आने पर कड़ा प्रतिबन्ध रहता है और यह प्रथा आज तक चालू है।
भगवान् कृष्ण इन कुमारी तरुण गोपियों के मन की बात जानते थे, अतः उन्होंने उनकी मनोकामना पूरी की। उन्होंने कृष्ण को पति रूप में प्राप्त करने की प्रार्थना की थी और कृष्ण उनकी इस मनोकामना को पूरा करना चाह रहे थे।
एक महीना पूरा होने पर कृष्ण अपने साथियों समेत वहाँ पर प्रकट हुए। कृष्ण का दूसरा नाम योगेश्वर है। ध्यान का अभ्यास करके योगी अन्य पुरुषों की मानसिक स्थिति का पता लगा सकता है, अतः कृष्ण गोपियों की मनोकामना को निश्चित रूप से जान गये।
वे वहाँ प्रकट हुए और तुरन्त गोपियों के समस्त वस्त्र उठाकर पास के वृक्ष पर चढ़ गये और मुस्कराते हुए उनसे बोले: हे युवतियों! तुम एक- एक करके यहाँ आओ और मुझसे प्रार्थना करके अपने-अपने वस्त्र ले जाओ।
मैं तुम लोगों से कोई हँसी नहीं कर रहा। मैं तुमसे सच-सच कह रहा हूँ। तुम लोगों से हँसी करने का मेरा कोई इरादा नहीं है, क्योंकि तुम देवी कात्ययानी की पूजा करते हुए एक मास तक अनुष्ठान करके थक गई हो।
तुम सब एकसाथ यहाँ मत आओ, तुम अकेले-अकेले आओ, मैं तुम में से प्रत्येक को तुम्हारे पूर्ण सौंदर्य के साथ देखना चाहता हूँ, क्योंकि तुम सभी क्षीण कटि वाली हो। मैंने तुम सभी से एक-एक करके आने के लिए कहा है, अत: मेरी आज्ञा का पालन करो।”
Why did krishna drink the fire/प्रभु श्री कृष्ण ने क्यों पी आग ?
जब जल के भीतर स्थित कुमारिकाओं ने कृष्ण के ऐसे परिहास भरे शब्द सुने, तो वे एक दूसरे की ओर देख-देख कर हँसने लगीं। वे कृष्ण के इस निवेदन को सुनकर परम प्रसन्न हुईं, क्योंकि वे पहले से उन्हें प्रेम करती थीं।
वे लज्जावश एक दूसरे की ओर देखती रहीं, किन्तु जल से निकल कर बाहर न आईं, क्योंकि वे नग्न थीं। उन्हें अधिक काल तक जल के भीतर रहने से ठंड सताने लगी जिससे वे थरथराने लगीं। फिर भी गोविन्द के मोहक तथा परिहासपूर्ण वचन सुनकर उनके मन परम प्रसन्नता से अशान्त होने लगे।
तब वे गोपिकाएं कृष्ण से कहने लगीं 'हे नन्दलाल! हमसे इस प्रकार की हँसी न करो। यह हमारे साथ घोर अन्याय है। तुम नन्द महाराज के पुत्र होने के कारण अत्यन्त प्रतिष्ठित हो और हमें अत्यन्त प्रिय हो,
किन्तु तुमको इस समय हमारे साथ ऐसा परिहास नहीं करना चाहिए, क्योंकि हम ठंडे जल के कारण ठिठुर रही हैं। कृपा करके हमें तुरन्त हमारे वस्त्र दे दो, अन्यथा हमें कष्ट होगा।”
वे पुनः कृष्ण से अत्यन्त विनीत भाव से कहने लगीं “हे श्यामसुन्दर ! हम तुम्हारी शाश्वत दासी हैं। तुम हमें जो भी आज्ञा दोगे उसे हम बिना हिचक के करने के लिए वाध्य हैं, क्योंकि हम उसे अपना पुनीत कर्तव्य समझती हैं।
किन्तु यदि तुम हमारे समक्ष ऐसा प्रस्ताव रखोगे, जिसे सम्पन्न करना असम्भव हो, तो यह समझ लो कि हमें नन्द महाराज से तुम्हारी शिकायत करनी पड़ेगी। यदि नन्द महाराज उस पर कोई कार्यवाही नहीं करेंगे, तो हम तुम्हारे इस दुर्व्यवहार को राजा कंस से कहेंगी।"
कुमारी गोपिकाओं की यह विनती सुनकर कृष्ण ने कहा, "हे बालिकाओं! अपने को मेरी शाश्वत सेविकाएँ मानती हो और मेरी आज्ञा का पालन करने के लिए सदैव तैयार रहती हो, तो मेरी यह विनती है कि तुम प्रसन्न मुख एक- एक करके यहाँ आओ और अपने-अपने वस्त्र ले जाओ।
यदि तुम नहीं आतीं और मेरे पिता से शिकायत करोगी, तो मैं कोई परवाह नहीं करूंगा, क्योंकि मैं जानता हूँ कि मेरे पिता वृद्ध हैं और मेरे विरुद्ध वे कुछ भी नहीं कर सकते।'
जब गोपियों ने देखा कि कृष्ण दृढ़संकल्प हैं, तो उनके पास आज्ञा-पालन के अतिरिक्त अन्य कोई चारा न था। वे एक-एक करके जल से निकल कर बाहर आईं, किन्तु पूर्ण नग्न होने के कारण अपनी नग्नता छिपाने के लिए वे अपने गुप्तांगों पर अपना बायाँ हाथ रखे थीं। ऐसी मुद्रा में वे थरथरा रही थीं। उनके इस सरल स्वभाव के कारण कृष्ण उन पर प्रसन्न हो गये।
गोपियों से क्या अपराध हुआ था ?
इस प्रकार जिन कुमारी गोपियों ने कोप से कृष्ण को पति रूप में पाने के लिए कात्यायनी से प्रार्थना की थी वे सब प्रसन्न हो गईं। कोई भी स्त्री अपने पति के अतिरिक्त अन्य किसी परुष के समक्ष नग्न नहीं हो सकती।
ये अविवाहित गोपिकाएँ कृष्ण को पतिरूप में चाहती थीं और कृष्ण ने उनकी इच्छा इस तरह पूरी की। वे उनसे प्रसन्न होकर उनके वस्त्रों को अपने कंधे में डालकर इस प्रकार बोले: "हे बालिकाओं। तुमने यमुना नदी के भीतर नग्न होकर बहुत बड़ा अपराध किया है।
इस कारण यमुना के अधिष्ठाता वरुणदेव तुम लोगों से अप्रसन्न हो गये हैं, अतः तुम सब हाथ जोड़कर वरुणदेव के समक्ष झुक कर प्रणाम करो जिससे वे तुम्हारे इस अपराध-कार्य को क्षमा कर दें।"
गोपियाँ अत्यन्त सरल जीवात्माएँ थीं और कृष्ण जो भी कहते उसे वे सत्य मान लेतीं, अतः वरुणदेव के मुक्त होने तथा अपनी मनोकामना की पूर्ति करने एवं अन्ततः आराध्यदेव कृष्ण को प्रसन्न करने के लिए उन्होंने तुरन्त उनकी आज्ञा मान ली। इस तरह वे कृष्ण की सर्वोच्च प्रेमिकाएँ तथा उनकी परम आज्ञाकारिणी दासियाँ बन गईं।
गोपियों के मनोभाव का वर्णन
गोपियों की कृष्णभक्ति की कोई बराबरी नहीं कर सकता। वास्तव में गोपियों को वरुण या किसी अन्य देवता की कोई परवाह न थी; वे तो केवल कृष्ण को प्रसन्न करना चाहती थीं। कृष्ण गोपियों के सरल आचरण से अत्यधिक प्रभावित तथा प्रसन्न थे, अतः उन्होंने तुरन्त ही उनके वस्त्र वापस कर दिये।
यद्यपि कृष्ण ने इन तरुण गोपिकाओं को ठगा था और उन्हें अपने समक्ष नग्न खड़ा रखा था तथा उनसे परिहास का आनन्द लूटा था और यद्यपि उन्होंने उन सबको पुत्तलिकाएँ समझकर उनके वस्त्र चुरा लिये थे, तो भी वे सब उनसे प्रसन्न थीं और उन्होंने कभी भी उनकी शिकायत नहीं की।
गोपियों के इस मनोभाव का वर्णन चैतन्य महाप्रभु की इस प्रार्थना में मिलता है : "हे भगवान् कृष्ण! आप चाहे मुझे प्रेम करें या पैरों के नीचे रोंद दें या मेरे समक्ष प्रकट न होकर मुझे भग्नहृदय कर दें।
आपको जो भाए सो करें, क्योंकि आपको पूरी छूट है। किन्तु तो भी आप मेरे स्वामी हैं; मेरा कोई अन्य आराध्य नहीं है।" कृष्ण के प्रति गोपियों का ऐसा था मनोभाव!
कृष्ण उनसे प्रसन्न थे और चूँकि सभी गोपिकाएं उन्हें पति-रूप में चाहती थीं, अतः कृष्ण ने उनसे कहा, "हे शिष्ट बालिकाओं! मैं अपने प्रति तुम्हारी इच्छा से परिचित और यह भी जानता हूँ कि तुम ने कात्यायनी की पूजा क्यों की। मैं तुम्हारे इस कार्य का पूरा अनुमोदन करता हूँ।
जिस किसी की पूर्ण चेतना, भले ही काम- वासना में रहकर ही क्यों न मुझमें तल्लीन रहती हो, वह उच्च पद प्राप्त करता है। जिस प्रकार भूना हुआ बीज नहीं उग सकता उसी प्रकार मेरी प्रेमाभक्ति के प्रसंग में कोई भी इच्छा सकाम फल नहीं देती जैसाकि सामान्य कर्म में होता है।"
गोपियों से श्री कृष्ण का वादा
ब्रह्म-संहिता का एक कथन है : कर्माणि निर्दहति किन्तु च भक्तिभाजाम्। प्रत्येक मनुष्य अपने कर्मों से बँधा है, किन्तु चूँकि भक्त भगवान् को प्रसन्न करने के लिए ही कर्म करते हैं, इसलिए उन्हें ऐसे कर्म-फल भोगने नहीं पड़ते।
इसी प्रकार कृष्ण के प्रति गोपियों का मनोभाव, यद्यपि वासनामय जान पड़ता है, किन्तु उसे सामान्य स्त्रियों की काम-इच्छाओं के समान नहीं समझना चाहिए। इसका कारण कृष्ण ने स्वयं बताया है। कृष्ण की भक्ति के हेतु किये गये कर्म किसी भी कर्म-फल से परे हैं।
कृष्ण ने आगे कहा, "हे गोपियो! मुझे पति रूप में पाने की तुम्हारी इच्छा पूरी होगी, क्योंकि तुम सबों ने इसी इच्छा से देवी कात्यायनी की पूजा की है।
मैं वचन देता हूँ कि मैं तुम सबसे अगली शरद ऋतु में मिलूँगा और तुम अपने पति रूप में मेरे साथ आनन्द भोग सकोगी।' थोड़े समय बाद कृष्ण अपने सखाओं सहित वृक्षों की छाया में बैठकर अत्यन्त प्रसन्न हो गए।
पूतना वध के समय भगवान् ने अपनी आँखे क्यों बंद की /कृष्ण द्वारा पूतना का वध
चलते समय उन्होंने वृन्दावन वासियों को सम्बोधित किया, "हे स्तोककृष्ण, हे वरूथप, हे भद्रसेन, हे सुदामा, हे सुबल, हे अर्जुन, हे विशाल, हे ऋषभ! जरा, वृन्दावन के इन परम भाग्यशाली वृक्षों को तो देखो! इन्होंने परोपकार में अपना जीवन उत्सर्ग कर दिया है।
ये अकेले-अकेले अन्धड़, वर्षा की झड़ी, प्रचण्ड आतप तथा बेधने वाली शीत जैसे प्राकृतिक प्रकोपों को सह लेते हैं, किन्तु ये हमारे श्रम को हरने तथा हमें शरण देने में अत्यन्त सतर्क रहते हैं। मेरे विचार से ये वृक्षों के रूप में इस जन्म में धन्य हैं।
ये दूसरों को शरण देने में इतने सतर्क रहते हैं कि वे उन सहृदय तथा दानी व्यक्तियों के समान हैं, जो पास आने वाले किसी व्यक्ति को भी दान देने से इनकार नहीं करता।
ये वृक्ष किसी को भी छाया देने से इनकार नहीं करते। ये मानव-समाज को विविध प्रकार की सुविधाएँ प्रदान करते हैं-यथा पत्तियाँ, फूल, फल, छाया, मूल, जड़, सुगंध तथा ईंधन। ये उदात्त जीवन के सर्वोत्तम उदाहरण हैं।
ये उन उदार व्यक्तियों के समान हैं जिन्होंने अपना सर्वस्व-अपना तन, मन, कर्म, बुद्धि तथा वाणी-समस्त प्राणियों की भलाई में अर्पित कर दिया है। इस तरह भगवान् श्रीकृष्ण वृक्षों के फलों, पत्तों तथा टहनियों का स्पर्श करते एवं उनके यशस्वी परोपकारी कार्यों की प्रशंसा करते यमुना-तट पर विहार करते रहे।
विभिन्न प्रकार के लोग अपनी-अपनी दृष्टियों से मानव-समाज के कल्याण हेतु कुछ कल्याण कार्य करते है, किन्तु सामान्य जनों के शाश्वत लाभ के लिए जो परोपकार किया जा सकता है, वह है कृष्णभावनामृत आन्दोलन का प्रसार । प्रत्येक व्यक्ति को इस आन्दोलन के प्रचार के लिए उद्यत रहना चाहिए।
जैसाकि भगवान् चैतन्य ने उपदेश दिया है, मनुष्य को भूमि की घास से भी विनम्र तथा वृक्ष से भी अधिक सहिष्णु होना चाहिए। स्वयं भगवान् कृष्ण ने वृक्षों की सहिष्णुता का वर्णन किया है और जो लोग कृष्णभावनामृत का उपदेश देते हैं उन्हें भगवान् कृष्ण तथा चैतन्य की प्रत्यक्ष गुरु-परम्परा से शिक्षा ग्रहण करनी चाहिए।
यमुना-तट स्थित वृन्दावन के जंगल से जाते हुए कृष्ण एक सुन्दर स्थान पर बैठ गये और गौवों को यमुना का स्वच्छ शीतल जल पीने दिया। थक जाने के कारण कृष्ण, बलराम तथा ग्वालों ने भी पानी पिया। कृष्ण ने गोपियों को यमुना में स्नान करते देखने के बाद शेष प्रातःकाल लड़कों के साथ बिताया।
प्रिय पाठकों ! इस पोस्ट में जो भी बाते लिखी गई है ,उन्हें पढ़ कर प्राणियों के मन में अनेक प्रकार के प्रश्न उठते है। किसी -किसी प्रसंग से तो मनुष्य गलत अर्थ भी निकाल लेते है। जैसे कि - कृष्ण लोभी है ,स्वार्थी है ,ठगी है ,चोर है और भी अन्य कई प्रकार के अभद्र आरोप लगाते है।
भगवान् कृष्ण के प्रति लोगों के मन में गलत धारणाये है। उन्होंने गोपियों के वस्त्र क्यों चुराए ?उन्होंने गोपियों को नग्न अवस्था में बाहर आने के लिए क्यों कहा ? दोस्तों !प्रश्न तो बहुत है लेकिन इस पोस्ट में केवल हम गोपियों की ही बात करेंगे। जानेंगे की अगर भगवान् श्री कृष्ण ने गोपियों के साथ ऐसा किया तो क्यों किया ,क्या कारण था ?
दोस्तों !सबसे पहले तो यहाँ आप ये जाने की भगवान् कभी भी किसी के साथ गलत नहीं करते। वो जो करते है सही करते है। उनकी हर करनी के पीछे उनके भक्तों का कल्याण छुपा होता है। फिर चाहे देखने में वो परिस्थिति कैसी भी हो।
यहां जो प्रश्न उठा की उन्होंने गोपियों के वस्त्र क्यों चुराए ?
अब देखने ,सुनने में ये परिस्थिती गलत है पर ऐसा उन्होंने गोपियों के कल्याण के लिए किया। क्योकि भगवान् कृष्ण गोपियों के मन की बात जानते थे, वे जानते थे कि गोपियों ने उनको पति रूप में पाने के लिए पुरे एक महीने तक माँ कात्यायनी की पूजा की।
अतः उन्होंने गोपिकाओ की मनोकामना पूरी करने के लिए वस्त्र चुराए। जैसा की ऊपर पोस्ट में हमने पढ़ा कि भगवान् कहते है की - जिस किसी की पूर्ण चेतना, भले ही काम- वासना में रहकर ही क्यों न मुझमें तल्लीन रहती हो, वह उच्च पद प्राप्त करता है।
जिस प्रकार भूना हुआ बीज नहीं उग सकता उसी प्रकार मेरी प्रेमाभक्ति के प्रसंग में कोई भी इच्छा सकाम फल नहीं देती जैसाकि सामान्य कर्म में होता है।"
प्रत्येक मनुष्य अपने कर्मों से बँधा है, किन्तु चूँकि भक्त भगवान् को प्रसन्न करने के लिए ही कर्म करते हैं, इसलिए उन्हें ऐसे कर्म-फल भोगने नहीं पड़ते। इसी प्रकार कृष्ण के प्रति गोपियों का मनोभाव, यद्यपि वासनामय जान पड़ता है,
किन्तु उसे सामान्य स्त्रियों की काम-इच्छाओं के समान नहीं समझना चाहिए। उनकी भावनाएं निर्मल थी ,वे कृष्ण से प्रेम करती थी ,उन्हें अपने पति रूप में देखती थी,उन्हें अपनी कोई सुद नहीं थी। वे चारों तरफ सिर्फ कृष्ण को ही देखती थी।
प्रिय मित्रों !अब ये तो समझ में आ गया की उन्होंने वस्त्र क्यों चुराए। पर दूसरा प्रश्न उठता कि ठीक है वस्त्र चुराए तो चुराए लेकिन गोपिकाओं को नग्न अवस्था में बाहर आने के लिए क्यों कहा-
और अगर कहा तो क्या गोपिकाओं का नग्न अवस्था में बाहर आना ठीक था ? So friends इसका सीधा सा जवाब है कि कोई भी स्त्री अपने पति के अतिरिक्त अन्य किसी पुरुष के समक्ष नग्न नहीं हो सकती।
ये अविवाहित गोपिकाएँ कृष्ण को पतिरूप में चाहती थीं। कृष्ण उनके लिए उनके पति थे ,कोई पर पुरुष नहीं। इसीलिए वे गोपिकाये पानी से बाहरआई।
भगवान् कृष्ण उनकी इच्छा पूरी करना चाहते थे,इसीलिए उन्होंने सभी गोपियों को एक एक करके आने के लिए कहा ,जिससे की हर गोपी को ये अहसास हो की वो उस गोपिका से स्नेह करते है ,
वे केवल उन्हें ही देखना चाहते और इसी अहसाह के जरिए गोपिकाओं को ये आभास भी कराया कि उन्होंने देवी कात्यायनि से जो वर माँगा ,जो इच्छा प्रकट की वो इच्छा अवश्य पूरी होगी ।
लेखक के अनुसार
दोस्तों पहली सबसे बड़ी बात की श्री कृष्ण भगवान् थे। उनके पास अत्यंत शक्ति है। उन्होंने अपने बालस्वरूप में अनेक राक्षसों को मारा जो उनके भगवान् होने का प्रमाण देता है।
क्या आज के सामान्य या दूध पीते बच्चो में ये power है?जो अपने बालस्वरूप में ये पहचान सके की कौन राक्षस है,कौन मित्र और कौन दुश्मन है?
और दूसरी बात बहुत important की उन्होंने किसी गोपी के साथ किसी प्रकार का कोई छल नहीं किया। सभी गोपियाँ उनसे प्रेम करती थी ,उन्हें अपना पति मानती रहती थी और इसीलिए भगवान् कृष्ण ने अपने अनेक स्वरुप बनाये।
जितनी गोपियाँ थी तो उतने ही प्रभु श्री कृष्ण। हर गोपी के साथ एक कृष्ण, तो भगवान् ने किसे धोखा दिया। वो तो सबके लिए समान थे।
मित्रों गहराई से सोचने वाली बात है कि आज समाज के जो प्रेमी है वो अपनी तुलना प्रभु श्री कृष्ण और गोपियों से करते है तो उनसे एक प्रश्न है कि गोपियाँ अनेक थी और कृष्ण एक फिर भी किसी भी गोपिका में एक दूसरे के प्रति ईर्ष्या भाव नहीं था।
क्या आज के प्रेमी इतने सहनशील है ?एक प्रेमिका या पत्नी अपने अलावा अपने पति या प्रेमी के साथ किसी अन्य स्त्री को नहीं देख सकती। ठीक इसी प्रकार एक प्रेमी या पति अपने अलावा किसी अन्य पुरुष को अपनी प्रेमिका या पत्नी के साथ नहीं देख सकता।
इसीलिए कहते है की युग और था ,वो जमाना और था ,जो जैसा है -उसे वैसे ही रहने दें। पभु श्री कृष्ण भगवान् थे ,है और अनंत काल तक रहेंगे। वो पूजनीय है ,
इसलिए मनुष्यों को चाहिए की वो उन्हें जितने श्रद्धाभाव और प्रेम से पूज सकते है ,तो पुजीय। इच्छा हो तो ठीक,न हो तो ठीक आपकी मर्जी पर भगवान् के प्रति व्यर्थ आलोचना नहीं करनी चाहिए।
हमारी बातों से यदि किसी व्यक्ति के दिल को ठेस पहुंची हो ,उसके लिए हम क्षमापार्थी है। भगवान् कृष्ण आपका कल्याण करें।
प्रिय पाठकों ! आशा करते है आपको पोस्ट पसंद आई होगी। इस पोस्ट को पढ़ने के बाद यदि आपके मन में भी कोई प्रश्न उठता है तो आप निःशंकोच हमसे पूछ सकते है।
हम उत्तर देने की पूरी कोशिश करेंगे। इसी के साथ हम विदा लेते है। विश्वज्ञान में अगली पोस्ट के साथ फिर मुलाक़ात होगी।तब तक आप खुश रहिये और प्रभु का स्मरण करते रहिये।
जय जय श्री राधे श्याम
धन्यवाद