श्री गणेशाय नमः
हर हर महादेव प्रिय पाठकों ! कैसे है आप लोग, आशा करते है आप सभी सकुशल होंगे। भगवान् शिव का आशीर्वाद हमेशा आपको प्राप्त हो।
कहानी -एक तुच्छ कीड़ा बना चारों वेदों का ज्ञाता
प्रिय पाठकों!अक्सर मन में ये ख्याल आता है ,शायद आपके मन भी आता होगा की कोई -कोई व्यक्ति ऐसा होता है की वो किसी के साथ कितना भी अच्छा व्यवहार कर ले ,उनकी मदद कर ले फिर भी अंत में उस व्यक्ति को बुराई ही मिलती है और कोई -कोई व्यक्ति ऐसा होता है की वो हमेशा दूसरों के साथ गलत व्यवहार करता है और औरों को हमेशा दुःखी ही रखता है ,घर में भी क्लेश रखता है फिर भी खुश रहता है।
कोई-कोई तो इतने बुरे कर्म करता है जैसे चोरी ,डकैती ,अपहरण ,खून -खराबा आदि। फिर भी उसके जीवन में खुशियां ही खुशियां होती है। कभी दुःखी नहीं रहता। गलत काम करने के बाद भी संसार में सिर उठाकर जीता है। तो दोस्तों आज हम आपको महर्षि व्यास जी की कही बातो द्वारा बताएँगे की पापी मनुष्य के सुखी रहने का क्या कारण है।
मित्रो शबरी और सुदामा ये दोनों बहुत ही भक्तिपूर्ण व्यक्ति थे। ये दोनों दुनिया में भक्ति के लिए प्रसिद्ध है। जबकि ये आर्थिक रूप से बड़े ही गरीब थे। लेकिन मन में भगवान् के प्रति अपार प्रेम था। फिर ये इतने गरीब क्यों थे। इसके पीछे एक बहुत ही सुंदर कथा है।
एक बार की बात है। तीनो कालों के ज्ञाता महर्षि व्यास जी अपने रथ पे सवार हो एक जंगल से गुजर (जा) रहे थे। तभी उनके सामने से एक कीड़ा बहुत ही तेजी से चलता हुआ दिखाई दिया। उन्होंने रथ रोका और उस कीड़े से पूछा की तुम इतनी जल्दी कहा जा रहे हो।
इस पर कीड़े ने कहा -हे मुनिवर ! सामने से एक बड़ी बैलगाड़ी आ रही है ,अगर मैं यहां से नहीं हटता तो मैं बैलगाड़ी के नीचे आकर मर जाता।
ये सुनकर मुनिवर बोले - ये तो तुम्हारे लिए बहुत अच्छी बात है। यदि तुम मर जाओगे तो तुम्हे इस कीड़े की योनि से मुक्ति मिल जाएगी। फिर उन्होंने कहा की मनुष्य अगर मृत्यु से डरे तब तो ठीक है लेकिन तुम तो एक कीड़े हो फिर तुम मृत्यु से क्यों डरते हो। तुम्हे तो खुश होना चाहिए क्योकि अगर इस बैलगाड़ी से तुम्हारी मृत्यु होती है तो तुम्हे इस तुच्छ कीड़े की योनि से मुक्ति मिल जायेगी।
इस कीड़े ने कहा हँसते हुए कहा - हे गुरुदेव मुझे इस मृत्यु से किसी प्रकार का कोई डर नहीं। मुझे तो डर बस इस बात का है की इस संसार में इस कीड़े योनि के अलावा भी कई प्रकार की निम्न योनिया जैसे मच्छर ,मक्खी ,टिड्डा आदि है। और अगर मैं मर गया तो कहीं मैं इन नीच योनियों में न चला जाऊं इसीलिए मैं भाग रहा हूँ क्योकि मुझे किसी अन्य योनि में जन्म लेने से डर लगता है।
कीड़े की बात सुनकर महर्षि व्यास जी ने कहा - तुम्हे इस बात से डरने की कोई जरूरत नहीं। जब तक तुम् ब्राह्मण योनि में जन्म नहीं ले लेते ,तब तक मैं तुम्हे दूसरी सभी योनियों से छुटकारा दिलाता रहूँगा। महर्षि व्यास जी की बाते सुनकर कीड़ा रुक गया और महर्षि व्यास जी के रथ नीचे आकर अपने प्राण त्याग दिए।
मरने के बाद पहले तो कीडे ने कौआ और फिर सियार की योनि में जन्म लिया तो महर्षि व्यास जी उस कीड़े के पास जाकर उसे उसके पिछले जन्म की याद दिलाई और उन दोनों योनियों से छुटकारा भी दिलाया। कीड़े ने इसी प्रकार अन्य योनियों जैसे पक्षी ,गधा ,चांडाल आदि में जन्म लिया और महर्षि व्यास उन्हें हर योनि से मुक्त करते गए।
कुछ कालो के बाद जब उस कीड़े ने मनुष्य योनि में एक ब्राह्मण कुल में जन्म लिया और जब वो 5 साल का हुआ तो महर्षि व्यास जी ने फिर से आकर उसे उसके पिछले सभी जन्मों को याद दिलाया और उन्होंने उस बच्चे के कानों में सिद्ध सारस्वत मन्त्र का उच्चारण किया।
जिसके प्रभाव के कारण वो बालक बिना पढ़े ही चारों वेदों ,शास्त्रों और धर्म का ज्ञाता बन गया। उसके बाद महर्षि ने उस बालक को आदेश दिया की वो कार्तिकेय के क्षेत्र में जाए जहां नंदभद्र नाम का एक व्यक्ति तपस्या कर रहा है।
महर्षि व्यास ने बालक को यह भी बताया की नंदभद्र को इस बात की शंका है कि आखिर क्यों अधिकतर पापी मनुष्य सुखी देखे जाते है। महर्षि का आदेश पाकर बालक नंदभद्र के पास पंहुचा और उसकी शंका को दूर करते हुए नंदभद्र से कहा की - पापी मनुष्य के सुखी रहने का कारण बहुत सरल है। हमारा ये जन्म कैसा होगा ?हम सुखी रहेंगे या दुखी ?हम आमिर होंगे या गरीब ?
ये सब हमारे पूर्व जन्म के कर्मों पर आधारित है। अगर हमने पिछले जन्म में अच्छे में अच्छे कर्म किये होंगे तो इस जन्म में उसका फल अच्छा मिलेगा। मनुष्य सब सुखो को भोगेगा फिर चाहे भले ही वो इस जन्म कितने ही पाप क्यों न कर रहा हो।
बालक ने आगे बताते हुए कहा की -कभी कभी पापी मनुष्य गलती से जाने -अनजाने कुछ कर्म कर देता है। जैसे बिना धर्म की जानकारी होते हुए भी वो गंगा स्नान कर लेता है , कभी कभी किसी पशु प्रेम में पढ़कर उसे भोजन करा देता है।
दोस्तों कहने को ये सारे काम तामस भाव से यानी अज्ञानता से ही किये गए हो लेकिन इनका फल अवश्य मिलता है। इन्ही सब कर्मों का फल पापी मनुष्य को उसके इसी जन्म में मिलता है।
मनुष्य चार प्रकार के होते है ?There are four types of human beings?
दोस्तों इसके अलावा महर्षि मार्कंड़य जी ने भी इसके बारे में बताया है की -मनुष्य चार प्रकार के होते है।
पहले - वो मनुष्य जिन्हे इस जन्म में सुख तो मिलता है पर परलोक में उसके लिए कोई स्थान नहीं होता।
दूसरे - वो मनुष्य जिन्हे परलोक में तो सुख होता है लेकिन इस लोक में नहीं।
तीसरे - वो मनुष्य जिन्होंने अपने पिछले जन्म और इस जन्म में अच्छे कर्म किये हो ,वो इस लोक और परलोक में अच्छे सुख भोगते है।
चौथे - वो मनुष्य जिन्होंने अपने हर जन्म में सिर्फ पाप ही पाप किये हो ,ऐसे मनुष्य को कभी भी सुख की प्राप्ति नहीं होती। फिर चाहे वो इस लोक में हो या परलोक में वो हमेशा दुखी ही रहता है।
प्रिय पाठकों !आशा करते है आपको पोस्ट पसंद आई होगी। आपको ये कहानी कैसी लगी। अपनी राय अवश्य प्रकट करें। विश्वज्ञान में अगली पोस्ट के साथ फिर मुलाक़ात होगी। आपअपना ख्याल रखे,खुश रहे और औरों को भी खुशियां बांटते रहे। भगवान् शिव आपका कल्याण करें।
धन्यवाद