भगवद्गीता श्लोक अर्थ सहित

हर हर महादेव प्रिय पाठकों, कैसे हैं आप लोग, हम आशा करते हैं कि आप ठीक होंगे। 

दोस्तों! वेद तो बहुत हैं और उनमे ज्ञान की बाते भी बहुत है। लेकिन भगवद्गीता मनुष्य को सही दिशा प्रदान करने का एक मुख्य स्रोत है। आज की इस पोस्ट में हम भगवान श्री कृष्ण के मुख से निकले भगवद गीता से प्रेरित कुछ अद्भुत और प्रेरणादायक श्लोक को पढ़ेंगे। जो जीवन को गहराई से समझने और सही दिशा में आगे बढ़ने की सीख देते हैं-

भगवद्गीता श्लोक अर्थ सहित


भगवद्गीता श्लोक अर्थ सहित
भगवद्गीता श्लोक अर्थ सहित


1. कर्म का महत्व

"कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन

(गीता अध्याय 2, श्लोक 47)

तुम्हारा अधिकार केवल कर्म करने पर है, उसके फल पर नहीं।

अर्थ

देखिए, यह बहुत महत्वपूर्ण बात है। श्रीकृष्ण कह रहे हैं कि हमें अपने काम पर ध्यान देना चाहिए, क्योंकि हमारे हाथ में केवल कर्म करना है, फल प्राप्त करना नहीं।

जैसे, आप परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं, तो आपका ध्यान केवल पढ़ाई पर होना चाहिए, परिणाम पर नहीं। अगर आप मेहनत ईमानदारी से करेंगे, तो परिणाम अच्छा ही होगा। इसलिए चिंता छोड़कर सिर्फ अपने काम में पूरी लगन से जुट जाएं।


2. संतुलित जीवन

"योग: कर्मसु कौशलम्।"

(गीता अध्याय 2, श्लोक 50)

योग का अर्थ है अपने कर्मों में कुशल और संतुलित रहना।

अर्थ

इसका मतलब यह है कि हर काम को कुशलता, ध्यान और संतुलन के साथ करें। जैसे, एक सर्जन ऑपरेशन करते समय पूरी एकाग्रता और दक्षता से काम करता है। यही योग है—अपने काम को सटीकता और संतुलन के साथ करना।


3. जीवन और मृत्यु का सत्य

"न जायते म्रियते वा कदाचिन्।"

(गीता अध्याय 2, श्लोक 20)

आत्मा न जन्म लेती है और न मरती है,यह अजर-अमर है।

अर्थ

सोचिए, हमारी आत्मा का स्वरूप एक ऊर्जा की तरह है, जो नष्ट नहीं होती। जब शरीर मरता है, तो आत्मा केवल एक नए शरीर में प्रवेश करती है। श्रीकृष्ण यह सिखा रहे हैं कि मृत्यु केवल शरीर की होती है, आत्मा अमर और शाश्वत है।


4. सफलता और विफलता पर

"सुख-दुखे समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ।"

(गीता अध्याय 2, श्लोक 38)

सुख-दुख, लाभ-हानि, और जीत-हार में समान भाव रखो।

अर्थ

मान लीजिए, आपने किसी प्रतियोगिता में हिस्सा लिया और हार गए। निराश होने की बजाय, इसे सीखने का अवसर मानें। और अगर जीत गए, तो अहंकारी न बनें। हर परिस्थिति में संतुलित रहना ही सच्ची समझदारी है।


5. स्वधर्म का पालन

"स्वधर्मे निधनं श्रेय: परधर्मो भयावह:"

(गीता अध्याय 3, श्लोक 35)

स्वधर्म का पालन करना श्रेष्ठ है, चाहे उसमें मृत्यु ही क्यों न हो।

अर्थ

श्रीकृष्ण यह सिखा रहे हैं कि अपने कर्तव्यों को निभाना, चाहे वह कठिन क्यों न हो, हमेशा अच्छा होता है। दूसरों के काम की नकल करने से आप अपनी योग्यता और पहचान खो सकते हैं। जैसे, एक डॉक्टर को अपना काम करना चाहिए और एक इंजीनियर को अपना।


6. मन और आत्मा का संयम

"उद्धरेदात्मनाऽऽत्मानं नात्मानमवसादयेत्।"

(गीता अध्याय 6, श्लोक 5)

मनुष्य को खुद ही अपना उद्धार करना चाहिए और खुद को गिरने नहीं देना चाहिए।

अर्थ

इसका मतलब है कि हमारी सबसे बड़ी ताकत और सबसे बड़ा दुश्मन हमारा अपना मन है। अगर आप सकारात्मक सोचेंगे और प्रयास करेंगे, तो आप अपनी बाधाओं को पार कर सकते हैं। लेकिन अगर आप निराशा में डूब जाएंगे, तो खुद ही अपनी प्रगति रोक लेंगे।


7. भक्ति और समर्पण

"सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।"

(गीता अध्याय 18, श्लोक 66)

सभी धर्मों को छोड़कर केवल मेरी शरण में आ जाओ।

अर्थ

श्रीकृष्ण कह रहे हैं कि अपने सारे कर्तव्यों और चिंताओं को भगवान पर छोड़ दो। जब आप पूरी तरह ईश्वर में समर्पित हो जाते हैं, तो भगवान आपकी सभी समस्याओं का समाधान करते हैं।


8. आत्म-साक्षात्कार

"विद्या विनयसम्पन्ने ब्राह्मणे गवि हस्तिनि।"

(गीता अध्याय 5, श्लोक 18)

सच्चा ज्ञानी हर जीव में समानता देखता है।

अर्थ

यह श्लोक हमें सिखाता है कि सच्चा ज्ञान वही है, जो हमें हर इंसान और जीव में समानता देखना सिखाए। चाहे कोई अमीर हो या गरीब, जानवर हो या इंसान, सबमें एक ही आत्मा का वास है।


9. क्रोध और वासना पर नियंत्रण

"क्रोधाद्भवति सम्मोह: सम्मोहात्स्मृतिविभ्रम:।"

(गीता अध्याय 2, श्लोक 63)

क्रोध से भ्रम उत्पन्न होता है, और भ्रम से स्मृति नष्ट होती है।

अर्थ

अगर आप क्रोध करते हैं, तो आपका दिमाग ठिकाने पर नहीं रहता। सोचने-समझने की शक्ति खत्म हो जाती है। यह हमें गलत फैसले लेने पर मजबूर करता है। इसलिए, हर स्थिति में शांत और संयमित रहने की कोशिश करें।

क्रोध मत करो, कोई किसी को नहीं मारता 


10. सच्ची शांति का मार्ग

"शांति: परमं सुखम्।"

(गीता अध्याय 2, श्लोक 72)

सच्ची शांति ही परम सुख है।

अर्थ

संसार के भौतिक सुख हमें लंबे समय तक संतुष्ट नहीं कर सकते। लेकिन अगर हमारा मन शांत है, तो हम हर परिस्थिति में खुश रह सकते हैं।


11. संदेह से मुक्ति

"संशयात्मा विनश्यति।"

(गीता अध्याय 4, श्लोक 40)

जो व्यक्ति संदेह करता है, वह न तो इस लोक में सुखी होता है, न परलोक में।

अर्थ

अगर आप किसी काम को लेकर हमेशा संशय में रहते हैं, तो आप कभी सफल नहीं हो सकते। विश्वास के साथ कदम बढ़ाइए, तभी आप अपने लक्ष्य तक पहुंच पाएंगे।

सफल होने के लिए हमें क्या करना चाहिए | जीवन में सफल कैसे बनें


12. समर्पण और विश्वास

"अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते।"

(गीता अध्याय 9, श्लोक 22)

जो बिना किसी अन्य विचार के मेरी पूजा करता है, मैं उनकी हर आवश्यकता पूरी करता हूं।

अर्थ

श्रीकृष्ण बता रहे हैं कि अगर आप पूरी निष्ठा और विश्वास के साथ भगवान का ध्यान करते हैं, तो वह आपकी हर जरूरत का ख्याल रखते हैं।


13. संसार की असारता

"असक्तो ह्याचरन् कर्म परमाप्नोति पूरुषः।"

(गीता अध्याय 3, श्लोक 19)

कर्म करते समय आसक्ति का त्याग करें, यही मुक्ति का मार्ग है।

अर्थ

काम करते समय फल की इच्छा छोड़ दें। अगर आप काम को सिर्फ कर्तव्य मानकर करेंगे, तो आपका मन स्वतंत्र और शांत रहेगा। यही सच्चा मोक्ष है।


तो प्रिय पाठकों, कैसी लगी आपको पोस्ट ,हम आशा करते हैं कि आपकों पोस्ट पसंद आयी होगी। इसी के साथ विदा लेते हैं अगली रोचक, ज्ञानवर्धक जानकारी के साथ विश्वज्ञान मे फिर से मुलाकात होगी ,तब तक के लिय आप अपना ख्याल रखे, हंसते रहिए, मुस्कराते रहिए और औरों को भी खुशियाँ बांटते रहिए।

धन्यवाद, हर हर महादेव 

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