हर हर महादेव प्रिय पाठकों, कैसे हैं आप? आशा करते हैं कि आप ठीक होंगे। दोस्तों! आज की इस पोस्ट मे हम जानेंगे की देव दीपावली और देव उठनी ग्यारस दोनों ही हिंदू धर्म के महत्वपूर्ण पर्व क्यों हैं?
देव दीपावली और देव उठनी ग्यारस दोनों ही हिंदू धर्म के महत्वपूर्ण पर्व क्यों हैं?
देव दीपावली और देव उठनी ग्यारस दोनों ही हिंदू धर्म के महत्वपूर्ण पर्व क्यों है? |
देव दीपावली और देव उठनी ग्यारस दोनों ही हिंदू धर्म के महत्वपूर्ण पर्व हैं, लेकिन इनके बीच कई अंतर हैं। आइए इन दोनों के बारे में विस्तार से समझते हैं।
1. देव उठनी ग्यारस (प्रबोधिनी एकादशी)
तिथि
देव उठनी ग्यारस, जिसे प्रबोधिनी एकादशी भी कहते हैं, कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है।
महत्व
इस दिन को विष्णु भगवान के चार महीने के योगनिद्रा से जागने का प्रतीक माना जाता है। इसे चातुर्मास के अंत का दिन भी माना जाता है, जो विशेष साधना और व्रत का समय होता है।
कारण
ऐसा माना जाता है कि आषाढ़ मास की शुक्ल एकादशी को भगवान विष्णु क्षीर सागर में शयन करने चले जाते हैं और इस अवधि को "चातुर्मास" कहते हैं। प्रबोधिनी एकादशी को भगवान विष्णु जागते हैं और सृष्टि के संचालन में पुनः सक्रिय होते हैं।
रीति-रिवाज
इस दिन कई स्थानों पर तुलसी विवाह का आयोजन भी किया जाता है, जिसमें तुलसी (जो माँ लक्ष्मी का प्रतीक मानी जाती है) का विवाह भगवान विष्णु के अवतार शालिग्राम से किया जाता है। इसे विष्णु भगवान और लक्ष्मी के पुनः मिलन के रूप में देखा जाता है। विवाह के साथ ही सभी शुभ कार्यों, विवाहों और धार्मिक समारोहों का शुभारंभ होता है।
2. देव दीपावली
तिथि
देव दीपावली कार्तिक मास की पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है, जिसे "कार्तिक पूर्णिमा" भी कहा जाता है। यह दीपावली के 15 दिन बाद आती है।
महत्व
देव दीपावली को "देवताओं की दिवाली" माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन देवता धरती पर उतरकर गंगा नदी के तट पर दीप प्रज्जवलित करते हैं और भगवान शिव की पूजा करते हैं।
पौराणिक कथा
एक प्रमुख कथा के अनुसार, त्रिपुरासुर नामक राक्षस के अत्याचारों से त्रस्त होकर सभी देवताओं ने भगवान शिव से सहायता मांगी थी। भगवान शिव ने कार्तिक पूर्णिमा के दिन त्रिपुरासुर का वध किया, जिससे देवताओं ने दीप जलाकर भगवान शिव का धन्यवाद किया। तब से इस दिन को देव दीपावली के रूप में मनाया जाता है।
रीति-रिवाज
देव दीपावली विशेषकर वाराणसी (काशी) में भव्य रूप से मनाई जाती है। गंगा घाटों को लाखों दीपों से सजाया जाता है, और इसे देखने के लिए देश-विदेश से भक्त यहाँ आते हैं। गंगा आरती, दीपदान, और भक्ति गीतों के माध्यम से भगवान शिव और अन्य देवताओं का आह्वान किया जाता है।
दिवाली पर क्या करने से भाग्योदय होगा
देव उठनी ग्यारस और देव दीपावली में मुख्य अंतर।
देव उठनी ग्यारस
तिथि
कार्तिक शुक्ल एकादशी
उद्देश्य
भगवान विष्णु के जागरण का पर्व
तुलसी विवाह और शुभ कार्यों का आरंभ
प्रमुख स्थान
पूरे भारत में
देव दीपावली
तिथि
कार्तिक पूर्णिमा
उद्देश्य
भगवान शिव द्वारा त्रिपुरासुर के वध का उत्सव
दीप जलाकर भगवान शिव की पूजा
प्रमुख स्थान
विशेष रूप से वाराणसी में
हम देव दीपावली क्यों मनाते हैं?
देव दीपावली भगवान शिव द्वारा राक्षस त्रिपुरासुर के वध की विजय का प्रतीक है। इस दिन को भगवान शिव और अन्य देवताओं के आशीर्वाद से जुड़े पावन अवसर के रूप में मनाया जाता है। इसे "देवताओं की दिवाली" इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह दिन देवताओं के लिए आनंद और उल्लास का समय है। लोग इस दिन दीप जलाकर भगवान शिव और देवताओं का आभार व्यक्त करते हैं और पुण्य अर्जित करते हैं।
सारांश में
देव उठनी ग्यारस भगवान विष्णु के योगनिद्रा से जागने का पर्व है, जबकि देव दीपावली भगवान शिव की विजय का उत्सव है। दोनों पर्वों का उद्देश्य अलग है, परंतु दोनों का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व अत्यंत उच्च है।
तो प्रिय पाठकों, कैसी लगी आपको पोस्ट ,हम आशा करते हैं कि आपकों पोस्ट पसंद आयी होगी। इसी के साथ विदा लेते हैं अगली रोचक, ज्ञानवर्धक जानकारी के साथ विश्वज्ञान मे फिर से मुलाकात होगी ,तब तक के लिय आप अपना ख्याल रखे, हंसते रहिए, मुस्कराते रहिए और औरों को भी खुशियाँ बांटते रहिए।
धन्यवाद ,हर हर महादेव