महाभारत के युद्ध में श्री कृष्ण ने अठारह दिनों तक मूंगफली क्यों खाई?

हर हर महादेव प्रिय पाठकों, कैसे हैं आप लोग, हम आशा करते हैं कि आप ठीक होंगे।

दोस्तों! महाभारत के युद्ध से जुड़ी कई कहानियाँ और प्रसंग बहुत ही दिलचस्प हैं, और उनमें से एक है कि श्री कृष्ण ने अठारह दिनों तक केवल मूंगफली क्यों खाई। आइए, बिना देरी किए इसे विस्तार से समझते हैं।

महाभारत के युद्ध में श्री कृष्ण ने अठारह दिनों तक मूंगफली क्यों खाई?


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महाभारत के युद्ध में श्री कृष्ण ने अठारह दिनों तक मूंगफली क्यों खाई?


कृष्ण का भूमिका और अन्न त्याग

महाभारत का युद्ध धर्म और अधर्म के बीच था, जिसमें श्री कृष्ण ने अर्जुन के सारथी के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। हालाँकि वे स्वयं युद्ध में सीधे नहीं लड़े, फिर भी वे युद्ध के हर निर्णय और रणनीति के केंद्र में थे।

यह कहा जाता है कि महाभारत के युद्ध के दौरान, श्री कृष्ण ने अन्न का त्याग किया था। उन्होंने अठारह दिनों तक केवल मूंगफली खाई, क्योंकि वे युद्ध में होने वाली हिंसा और रक्तपात से व्यथित थे। अन्न को जीवन और पोषण का प्रतीक माना जाता है, और युद्ध के समय इतने सारे सैनिकों की मृत्यु हो रही थी, जिसे देखकर श्री कृष्ण ने अन्न का त्याग किया। मूंगफली एक ऐसा आहार है जो हल्का होता है और शरीर को आवश्यक ऊर्जा प्रदान करता है, इसलिए उन्होंने इसे चुना।


युद्ध के दौरान मानसिक संतुलन बनाए रखना

युद्ध के दौरान तनाव और मानसिक संघर्ष बहुत अधिक होता है। श्री कृष्ण ने मूंगफली खाकर अपने शरीर को हल्का रखा, ताकि वे मानसिक रूप से स्थिर रहें और युद्ध की रणनीति को सही तरीके से दिशा दे सकें। इससे उनका ध्यान युद्ध की सही दिशा में लगा रहा और वे किसी भी तरह की अनावश्यक तृष्णा या भोग से दूर रहे। यह उनके संयम और आत्मनियंत्रण का भी प्रतीक है।


साधारणता में महानता

श्री कृष्ण का जीवन इस बात का उदाहरण है कि साधारणता में भी महानता है। उन्होंने हमेशा सादगी और संयम को अपने जीवन का हिस्सा बनाए रखा। युद्ध के समय उन्होंने किसी प्रकार की सुविधा या विशेष आहार की मांग नहीं की, बल्कि केवल मूंगफली जैसी साधारण चीज को अपने आहार के रूप में अपनाया। यह उनके व्यक्तित्व का वह पक्ष है, जहाँ वे महान होने के बावजूद सादगी और संयम को महत्व देते थे।

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शरीर और आत्मा का संबंध

महाभारत के युद्ध में श्री कृष्ण का उद्देश्य धर्म की स्थापना करना था। युद्ध में इतनी भारी मात्रा में हिंसा हो रही थी कि उन्होंने शरीर को शांत और स्थिर रखने के लिए हल्का आहार चुना। यह उनके लिए एक आत्मसंयम और तपस्या का रूप था। उन्होंने स्वयं को युद्ध के भौतिक और मानसिक संघर्षों से ऊपर रखा, ताकि वे अपने उद्देश्य में पूरी तरह केंद्रित रहें।


भौतिक इच्छाओं से परे होना

श्री कृष्ण ने जीवन भर यह सिखाया कि मनुष्य को अपनी भौतिक इच्छाओं से ऊपर उठना चाहिए। युद्ध के समय भी उन्होंने इस आदर्श का पालन किया और अपने लिए केवल वही लिया जो न्यूनतम था। मूंगफली खाना उनके आत्मनियंत्रण का एक उदाहरण है, जहाँ वे न केवल युद्ध का नेतृत्व कर रहे थे, बल्कि व्यक्तिगत रूप से भी संयमित जीवन जी रहे थे।

संक्षेप में 

श्री कृष्ण का अठारह दिनों तक मूंगफली खाना हमें उनके संयम, सादगी और आत्मनियंत्रण का अद्भुत उदाहरण देता है। युद्ध के बीच भी, उन्होंने यह दिखाया कि भौतिक सुख-सुविधाओं की तुलना में मानसिक शांति और आत्मनियंत्रण अधिक महत्वपूर्ण हैं। उनका यह कृत्य हमें सिखाता है कि चाहे परिस्थितियाँ कैसी भी हों, अगर हम अपने उद्देश्य और आत्म-संयम में दृढ़ रहें, तो हम किसी भी चुनौती का सामना कर सकते हैं।

तो प्रिय पाठकों, आशा करते हैं कि आपको पोस्ट पसंद आई होगी। ऐसी ही रोचक जानकारियों के साथ विश्वज्ञान मे फिर से मुलाकात होगी, तब तक के लिए आप अपना ख्याल रखें, हंसते रहिए,मुस्कराते रहिए और औरों को भी खुशियाँ बांटते रहिए। 

धन्यवाद, हर हर महादेव

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