पार्वती माता का जन्म और शिव को पाने की तपस्या

हर हर महादेव प्रिय पाठकों, कैसे हैं आप लोग, हम आशा करते हैं कि आप ठीक होंगे।आज की इस पोस्ट मे हम पार्वती माता का जन्म और शिव को पाने की तपस्या के बारे में जानेंगे। 

पार्वती माता का जन्म और शिव को पाने की तपस्या।

पार्वती माता का जन्म और शिव को पाने की तपस्या
पार्वती माता का जन्म और शिव को पाने की तपस्या


पार्वती माता का जन्म और उनके शंकर भगवान को प्राप्त करने के लिए की गई तपस्या का इतिहास भारत की महान धार्मिक कथाओं में से एक है। माता पार्वती का जन्म हिमालय पर्वत के राजा हिमवान और उनकी पत्नी मैना देवी के घर हुआ था। इसलिए, पार्वती को "हिमालय की पुत्री" भी कहा जाता है। उनका जन्म हिमाचल प्रदेश में हुआ था, जो कि एक पवित्र स्थान माना जाता है।

तपस्या स्थल

शिव को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए, पार्वती ने कठोर तपस्या की। यह माना जाता है कि उन्होंने तपस्या के लिए उत्तराखंड के पवित्र स्थान गौरीकुंड का चयन किया, जो केदारनाथ धाम के मार्ग पर स्थित है। गौरीकुंड का धार्मिक महत्त्व भी इसी कारण से है, क्योंकि यहाँ पार्वती ने कठोर तपस्या की थी। इस स्थान का नाम भी गौरी माता के नाम पर पड़ा है, और इसे वह स्थल माना जाता है जहाँ माता ने भगवान शिव को प्रसन्न कर उन्हें पति के रूप में प्राप्त किया।

प्रमुख मंदिर

भारत में कई ऐसे मंदिर हैं जो पार्वती माता के जन्म और उनकी तपस्या से संबंधित हैं, और यहाँ श्रद्धालु दूर-दूर से दर्शन के लिए आते हैं। इनमें से प्रमुख मंदिरों में निम्नलिखित शामिल हैं,

गौरीकुंड मंदिर, उत्तराखंड

गौरीकुंड का पवित्र स्थान एक प्रमुख तीर्थस्थल है, जहाँ माता पार्वती के तपस्या स्थल के रूप में उनकी विशेष पूजा होती है। यहाँ एक जलकुंड है जिसे 'गौरी कुंड' कहा जाता है, और कहा जाता है कि माता ने यहाँ स्नान कर तपस्या आरम्भ की थी।

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मनसा देवी मंदिर, हरिद्वार

हरिद्वार स्थित इस मंदिर को पार्वती माता का मंदिर माना जाता है, जहाँ लोग उनकी विशेष पूजा करते हैं। यह मंदिर भी हिमालय के समीप होने के कारण माता के प्रति विशेष मान्यता रखता है।

कामाख्या मंदिर, असम

असम के गुवाहाटी में स्थित इस प्राचीन मंदिर में माँ पार्वती के शक्ति स्वरूप की पूजा होती है। कामाख्या देवी को शक्ति पीठों में से एक माना जाता है, और यहाँ माता का आशीर्वाद लेने के लिए भक्त आते हैं।

तारकेश्वर महादेव मंदिर, पश्चिम बंगाल 

यहाँ भगवान शिव और माता पार्वती की संयुक्त पूजा होती है और इसे तपस्या स्थल के रूप में भी देखा जाता है। इस मंदिर का महत्त्व उन भक्तों के लिए है जो भगवान शिव-पार्वती के दिव्य मिलन को देखना चाहते हैं।

पार्वती माता की पूजा का महत्त्व

पार्वती माता की पूजा से न केवल आध्यात्मिक शांति मिलती है बल्कि इसे दांपत्य सुख, प्रेम, और सौभाग्य का प्रतीक भी माना गया है। इसलिए, माता पार्वती के जन्म और तपस्या स्थलों पर श्रद्धालु अपने जीवन में सुख-समृद्धि और वैवाहिक संतुलन के लिए प्रार्थना करते हैं।

इन स्थलों का दर्शन भक्तों के लिए अत्यंत पवित्र माना जाता है, और पार्वती माता के जीवन की ये घटनाएँ उनकी भक्ति और समर्पण का प्रतीक हैं।

तपस्या से जुड़ी एक प्रमुख कथा

पार्वती माता की तपस्या से जुड़ी एक प्रमुख कथा है, जो उनके भक्ति और समर्पण को दर्शाती है। यह कथा हमें बताती है कि कैसे माता पार्वती ने भगवान शिव को अपने पति के रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की थी।

कथा 

जब पार्वती का जन्म हिमवान और मैना देवी के घर हुआ, तो उन्होंने अपना सारा जीवन भगवान शिव को समर्पित कर दिया। उन्हें बचपन से ही यह अनुभूति थी कि भगवान शिव ही उनके लिए उपयुक्त पति हैं। भगवान शिव अपने ध्यान में लीन रहते थे और सांसारिक सुखों से दूर रहते थे, जिससे उनके मन में विवाह का विचार ही नहीं था। लेकिन पार्वती का भगवान शिव के प्रति दृढ़ विश्वास और प्रेम अडिग था।

माता पार्वती ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कठिन तपस्या का संकल्प लिया। उन्होंने गौरीकुंड में तपस्या की, जहाँ उन्होंने न केवल भोजन और जल का त्याग किया बल्कि कई वर्षों तक घोर तप में लीन रहीं। कहा जाता है कि उनकी तपस्या इतनी कठोर थी कि उन्होंने जंगल में निवास किया और पेड़-पौधों से प्राप्त फल-फूलों को भी त्याग दिया। केवल सूखे पत्तों पर निर्भर होकर, माता ने कठोरता से अपने संकल्प को निभाया। 

शिव का परीक्षा लेना

उनकी तपस्या को देखकर देवताओं ने सोचा कि भगवान शिव को प्रसन्न करना बहुत मुश्किल है, इसलिए उन्होंने भगवान शिव से निवेदन किया कि वे माता पार्वती की तपस्या को स्वीकार करें। शिवजी ने उनकी भक्ति की परीक्षा लेने का विचार किया। वह एक साधारण ब्राह्मण का रूप लेकर पार्वती के सामने प्रकट हुए और उनकी तपस्या के बारे में जानना चाहा।

ब्राह्मण रूप में भगवान शिव ने माता से कहा, तुम इतनी कठिन तपस्या क्यों कर रही हो? भगवान शिव तो एक योगी हैं, जो दुनियादारी से बहुत दूर रहते हैं। उनका कोई घर नहीं, कोई वस्त्र नहीं, और वे श्मशान में निवास करते हैं। तुम जैसी राजकुमारी के लिए तो किसी राजा या राजकुमार के साथ विवाह करना उचित होगा।

पार्वती माता ने यह सुनकर उत्तर दिया, मुझे किसी संपत्ति या सांसारिक सुख की आवश्यकता नहीं है। मुझे तो केवल भगवान शिव का ही साथ चाहिए। मेरे मन में उनसे गहरा प्रेम है, और मुझे उनके अतिरिक्त कोई अन्य पति नहीं चाहिए।

भगवान शिव का रूप प्रकट करना

पार्वती माता का यह दृढ़ संकल्प और समर्पण देखकर भगवान शिव अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्होंने अपने वास्तविक स्वरूप में प्रकट होकर माता को वरदान दिया। उन्होंने माता से कहा, तुम्हारी तपस्या और प्रेम ने मुझे प्रसन्न कर दिया है। मैं तुम्हें अपने जीवनसाथी के रूप में स्वीकार करता हूँ।

इस प्रकार भगवान शिव ने माता पार्वती को अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया और दोनों का विवाह हुआ, जिसे आज भी शिव-पार्वती का मिलन कहा जाता है। यह मिलन प्रेम, समर्पण, और तपस्या का प्रतीक है और आज भी श्रद्धालुओं के लिए प्रेरणा का स्रोत बना हुआ है।

शिक्षा

इस कथा से हमें यह शिक्षा मिलती है कि सच्ची भक्ति और दृढ़ संकल्प से भगवान भी प्रसन्न होते हैं। माता पार्वती का प्रेम और उनकी तपस्या हमें यह सिखाती है कि चाहे कितनी भी कठिनाई क्यों न हो, यदि हमारा लक्ष्य पवित्र और सच्चा हो, तो उसे पाने में सभी ब्रह्मांड की शक्तियाँ सहयोग करती हैं।

तो प्रिय पाठकों, आशा करते हैं कि आपको पोस्ट पसंद आई होगी। ऐसी ही रोचक जानकारियों के साथ विश्वज्ञान मे फिर से मुलाकात होगी, तब तक के लिए आप अपना ख्याल रखें, हंसते रहिए,मुस्कराते रहिए और औरों को भी खुशियाँ बांटते रहिए। 

धन्यवाद, हर हर महादेव

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