भगवान परशुराम की कथा

हर हर महादेव प्रिय पाठकों! आशा करते हैं कि आप ठीक होंगे। आज की इस पोस्ट मे हम भगवान परशुराम की कथा के बारे मे जानेंगे। भगवान परशुराम, भगवान विष्णु के छठे अवतार हैं। उनका जन्म पृथ्वी पर अधर्म और अन्याय को समाप्त करने के लिए हुआ। उनकी कथा हमें धर्म और सत्य के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती है। तो चलिए बिना देरी किए पढ़ते हैं आज की पोस्ट-

भगवान परशुराम की कथा

भगवान परशुराम की कथा
भगवान परशुराम की कथा


परशुराम का जन्म और परिवार

भगवान परशुराम का जन्म भृगु ऋषि के वंशज जमदग्नि ऋषि और उनकी पत्नी रेणुका के घर हुआ। उनका जन्म त्रेता युग में हुआ था। उन्हें "परशुराम" इसलिए कहा गया क्योंकि वे परशु (कुल्हाड़ी) धारण करते थे। वे चिरंजीवी माने जाते हैं और हर युग में धर्म की रक्षा के लिए उपस्थित रहते हैं।

परशुराम का क्रोध और अन्याय के खिलाफ संघर्ष

परशुराम अपने समय के शक्तिशाली क्षत्रियों के अन्याय और अधर्म के खिलाफ खड़े हुए। उनकी कथा के अनुसार, जब हैहय वंश के राजा सहस्रार्जुन ने उनके पिता, ऋषि जमदग्नि का वध कर दिया, तब परशुराम ने 21 बार पृथ्वी से अधर्मी क्षत्रियों का विनाश किया। यह उनके दृढ़ संकल्प और धर्म की रक्षा के प्रति उनके समर्पण को दर्शाता है।

परशुराम और भगवान राम

भगवान परशुराम का संबंध रामायण से भी जुड़ा हुआ है। जब भगवान राम ने शिवजी का धनुष तोड़ा, तब परशुराम ने उनसे प्रश्न किया। राम और परशुराम के बीच यह संवाद धर्म और मर्यादा का सुंदर उदाहरण प्रस्तुत करता है।

परशुराम और महाभारत

महाभारत में भी भगवान परशुराम का महत्वपूर्ण योगदान है। वे भीष्म, द्रोणाचार्य और कर्ण के गुरु थे। उन्होंने अपने शिष्यों को शस्त्र विद्या सिखाई। हालांकि, जब कर्ण ने उनसे झूठ बोलकर शिक्षा प्राप्त की, तो परशुराम ने कर्ण को श्राप दिया कि वह युद्ध के सबसे महत्वपूर्ण समय में अपने ज्ञान को भूल जाएगा।

परशुराम के आदर्श और शिक्षा

भगवान परशुराम की कथा हमें सिखाती है कि धर्म और सत्य की रक्षा के लिए हमें साहस और संकल्प की आवश्यकता होती है। उनका जीवन एक योद्धा के रूप में न केवल शारीरिक बल का प्रतीक है, बल्कि नैतिकता और न्याय के प्रति अटूट विश्वास का भी प्रतीक है।

परशुराम से जुड़ी पौराणिक धरोहर

परशुराम से संबंधित कई स्थान भारत में मौजूद हैं, जैसे परशुराम कुंड (अरुणाचल प्रदेश), जनपाव पर्वत (मध्य प्रदेश), और उनके नाम पर कई मंदिर। 

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भगवान परशुराम की पूजा क्यों नहीं की जाती?

1. भगवान परशुराम एक तपस्वी और योद्धा दोनों थे। उनके जीवन का मुख्य उद्देश्य अन्याय और अधर्म का नाश करना था। उनका क्रोध और कठोर स्वभाव उन्हें पूजनीय देवताओं से अलग करता है। लोग उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए उनका आह्वान करते हैं, परंतु उनकी नियमित पूजा करना प्रचलित नहीं है।

2. परशुराम चिरंजीवी हैं और आज भी माने जाते हैं कि वे इस पृथ्वी पर मौजूद हैं। इसलिए उनकी मूर्तियां स्थापित कर पूजा करने के बजाय, लोग उन्हें अपने संकटों के समय आह्वान करते हैं।

3. परशुराम को अधिकतर एक महान गुरु और योद्धा के रूप में जाना जाता है। उनकी आराधना से ज्यादा, उनके सिद्धांतों और शिक्षाओं का पालन करने की परंपरा है।

4. परशुराम का जीवन अन्याय और अधर्म के खिलाफ कठोर कदम उठाने का प्रतीक है। उनकी पूजा की जगह उनकी शक्ति और योगदान को स्मरण करते हुए उन्हें बुलाने (आह्वान) की प्रथा अधिक रही है।

शिष्यों को अस्त्र-शस्त्र का ज्ञान देना 

त्रेता युग से द्वापर युग तक भगवान परशुराम ने कई महान योद्धाओं और शूरवीरों को अस्त्र-शस्त्र और युद्ध कौशल का ज्ञान प्रदान किया। उनके प्रमुख शिष्यों के नाम इस प्रकार हैं-

1. भगवान राम (त्रेता युग)

जब भगवान राम ने शिव का धनुष तोड़ा, तो परशुराम उनके सामने आए। उन्होंने राम की परीक्षा ली और उनकी दिव्यता को पहचानते हुए उन्हें क्षत्रिय धर्म की शिक्षा प्रदान की।

2. भीष्म (द्वापर युग)

परशुराम ने गंगा पुत्र भीष्म को अस्त्र-शस्त्र का ज्ञान दिया और उन्हें एक महान योद्धा बनाया। भीष्म ने कौरव और पांडव दोनों के लिए जीवन भर धर्म का पालन किया।

3. द्रोणाचार्य

महाभारत के गुरु द्रोणाचार्य भी परशुराम के शिष्य थे। परशुराम ने उन्हें युद्ध कला और दिव्य अस्त्रों का ज्ञान दिया, जिससे उन्होंने कौरवों और पांडवों को प्रशिक्षित किया।

4. कर्ण

कर्ण ने भी परशुराम से दिव्य अस्त्रों की शिक्षा ली। हालांकि, कर्ण ने अपनी जाति छिपाई थी और जब यह सत्य उजागर हुआ, तो परशुराम ने उन्हें शाप दिया कि महत्वपूर्ण समय पर उनका सीखा हुआ ज्ञान काम नहीं आएगा।

5. कृपाचार्य

महाभारत के महान योद्धा और कौरवों के गुरु कृपाचार्य को भी परशुराम ने शस्त्र शिक्षा दी।

6. अर्जुन

अर्जुन को परशुराम ने सीधे शिक्षा नहीं दी, लेकिन गुरु द्रोणाचार्य के माध्यम से उनके ज्ञान का प्रसार हुआ।

7. वीर बर्बरीक

भगवान परशुराम ने बर्बरीक को भी युद्ध और दिव्यास्त्रों की शिक्षा दी। बर्बरीक को महाभारत के युद्ध में सबसे शक्तिशाली योद्धा माना जाता है।

भगवान परशुराम के योगदान

1. क्षत्रिय धर्म की स्थापना

परशुराम ने 21 बार पृथ्वी को अधर्मी क्षत्रियों से मुक्त किया और धर्म की स्थापना की।

2. धनुर्विद्या और युद्ध कौशल के गुरु

उन्होंने अपने शिष्यों को न केवल शस्त्र विद्या सिखाई बल्कि धर्म के प्रति उनका दायित्व भी समझाया।

3. चिरंजीवी अवतार

वे त्रेता युग से लेकर द्वापर युग तक सक्रिय रहे और कलियुग में भी धर्म स्थापना के लिए अपनी उपस्थिति बनाए रखेंगे।

भगवान परशुराम की पूजा कम, लेकिन उनका आह्वान इसलिए किया जाता है क्योंकि वे आज भी इस पृथ्वी पर चिरंजीवी माने जाते हैं। वे अधर्म के नाश और धर्म की स्थापना के प्रतीक हैं। त्रेता और द्वापर युग में उन्होंने भगवान राम, भीष्म, द्रोणाचार्य, कर्ण, और कृपाचार्य जैसे योद्धाओं को अस्त्र-शस्त्र का ज्ञान देकर धर्म की स्थापना में योगदान दिया। उनकी कृपा के लिए उनकी शिक्षाओं का पालन करना ही सच्ची भक्ति मानी जाती है।

मुख्य बिंदु 

  • परशुरामजी भगवान विष्णु के छठे अवतार है तथा धर्म की स्थापना और अधर्म का नाश करने के लिए प्रसिद्ध हैं।
  • उनका जन्म भृगु वंश में हुआ, उनके पिता का नाम ऋषि जमदग्नि और माता का नाम रेणुका है ।
  • वे चिरंजीवी (अमर) है और ब्राह्मण-क्षत्रिय गुणों से युक्त है।
  • परशुरामजी ने 21 बार पृथ्वी को अधर्मी क्षत्रियों से मुक्त किया।
  • परशुरामजी ने भगवान शिव से परशु (कुल्हाड़ी) प्राप्त की, जो उनकी पहचान है।
  • परशुराम जी ने भीष्म, द्रोणाचार्य, कर्ण, कृपाचार्य, और बर्बरीक जैसे महान योद्धाओं को अस्त्र-शस्त्र का ज्ञान दिया।
  • त्रेता युग मे उन्होने भगवान राम की परीक्षा ली और उनकी दिव्यता को स्वीकार किया।
  • कलियुग मे कल्कि अवतार के गुरु बनकर उन्हें अस्त्र-शस्त्र और धर्म की शिक्षा देंगे।
  • उनकी पूजा कम होती है, पर आह्वान संकटों में किया जाता है।
  • अक्षय तृतीया को परशुराम जयंती मनाई जाती है।

तो प्रिय पाठकों, कैसी लगी आपको पोस्ट ,हम आशा करते हैं कि आपकों पोस्ट पसंद आयी होगी। इसी के साथ विदा लेते हैं अगली रोचक, ज्ञानवर्धक जानकारी के साथ विश्वज्ञान मे फिर से मुलाकात होगी ,तब तक के लिय आप अपना ख्याल रखे, हंसते रहिए, मुस्कराते रहिए और औरों को भी खुशियाँ बांटते रहिए।

धन्यवाद ,हर हर महादेव

A real story bhakt piplaad | दूसरों का अमंगल चाहने में ,अपना अमंगल पहले होता है 

Faqs

1. भगवान परशुराम कौन थे?

भगवान परशुराम विष्णुजी के छठे अवतार हैं। वे एक तपस्वी ब्राह्मण और शक्तिशाली योद्धा थे, जिनका उद्देश्य अधर्म का नाश और धर्म की स्थापना करना था।

2. भगवान परशुराम को चिरंजीवी क्यों कहा जाता है?

भगवान परशुराम को चिरंजीवी कहा जाता है क्योंकि वे अमर हैं और आज भी पृथ्वी पर मौजूद माने जाते हैं। वे कलियुग में भगवान कल्कि के गुरु बनकर उन्हें दिव्यास्त्र देंगे।

3. भगवान परशुराम की पूजा क्यों नहीं की जाती?

परशुराम जी की पूजा इसलिए कम की जाती है क्योंकि वे चिरंजीवी हैं और आज भी जीवित माने जाते हैं। उनकी मूर्ति स्थापित करने के बजाय, उनका आह्वान उनकी कृपा और शक्ति प्राप्त करने के लिए किया जाता है।

4. परशुराम जी ने कितनी बार पृथ्वी को क्षत्रियों से मुक्त किया?

परशुराम जी ने 21 बार पृथ्वी को अधर्मी और अत्याचारी क्षत्रियों से मुक्त किया।

5. क्या भगवान परशुराम के परिवार के बारे में कुछ जानकारी है?

भगवान परशुराम के पिता का नाम ऋषि जमदग्नि और माता का नाम रेणुका था। उनका जन्म भृगु ऋषि के वंश में हुआ था।

6. भगवान परशुराम ने किन योद्धाओं को अस्त्र-शस्त्र का ज्ञान दिया?

उन्होंने भीष्म, द्रोणाचार्य, कर्ण, कृपाचार्य, और बर्बरीक जैसे महान योद्धाओं को अस्त्र-शस्त्र और युद्ध कला का ज्ञान दिया।

7. भगवान परशुराम का मुख्य उद्देश्य क्या था?

उनका मुख्य उद्देश्य अधर्मियों का नाश, अत्याचारी क्षत्रियों का विनाश, और धर्म की स्थापना करना था।

8. भगवान परशुराम त्रेता युग में किससे मिले?

त्रेता युग में भगवान परशुराम ने भगवान राम से भेंट की थी और उनकी दिव्यता की परीक्षा ली थी।

9. भगवान परशुराम की पूजा का दिन कौन सा है?

अक्षय तृतीया को भगवान परशुराम जयंती के रूप में मनाया जाता है। यह दिन उनके जन्मदिन के रूप में प्रसिद्ध है।

10. भगवान परशुराम का आह्वान क्यों किया जाता है?

उनका आह्वान इसलिए किया जाता है क्योंकि वे आज भी जीवित हैं और संकट या जरूरत के समय उनकी कृपा प्राप्त की जा सकती है।

11. भगवान परशुराम कलियुग में क्या करेंगे?

कलियुग में भगवान परशुराम भगवान विष्णु के अंतिम अवतार कल्कि को अस्त्र-शस्त्र और धर्म की शिक्षा देंगे।

12. क्या भगवान परशुराम के नाम से कोई स्थान प्रसिद्ध है?

भारत में कई स्थान भगवान परशुराम से जुड़े हैं, जैसे कि परशुराम कुंड (अरुणाचल प्रदेश) और परशुरामेश्वर मंदिर (ओडिशा)।

13. क्या परशुराम ब्राह्मण थे या क्षत्रिय?

भगवान परशुराम जन्म से ब्राह्मण थे लेकिन उन्होंने क्षत्रिय धर्म का पालन किया। इसलिए वे "ब्राह्मण-क्षत्रिय" कहलाते हैं।

14. भगवान परशुराम का सबसे प्रसिद्ध अस्त्र कौन सा था?

उनका सबसे प्रसिद्ध अस्त्र परशु (कुल्हाड़ी) था, जो उन्हें भगवान शिव से प्राप्त हुआ था।

15. भगवान परशुराम से जुड़ा कोई शास्त्र है?

गरुड़ पुराण और अन्य ग्रंथों में भगवान परशुराम के जीवन और उनके कार्यों का विस्तृत वर्णन मिलता है।

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