महिमा हरिद्वार कुंभ मेले की: जानिए इसका इतिहास और महत्व

हर हर  महादेव! प्रिय पाठकों,कैसे हैं आप? आशा करते हैं कि आप सभी ठीक होंगे।

दोस्तों! आज की इस पोस्ट में हम जानेंगे हरिद्वार कुंभ मेले की कुछ महत्वपूर्ण जानकारियों को,जैसे- हरिद्वार कुम्भ के लिए क्यों प्रसिद्ध है, कुम्भ मेले के इतिहास, महिमा, तिथियाँ, स्नान, शाही स्नान आदि के बारे मे पूरी जानकारी। 

कुंभ मेला हिंदू धर्म का एक प्रमुख धार्मिक आयोजन है, जो चार स्थानों—प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक—में आयोजित होता है। आइए पौराणिक कथाओं के जरिए हरिद्वार की महिमा और कुम्भ के महत्व को जाने।

महिमा हरिद्वार कुंभ मेले की: जानिए इसका इतिहास और महत्व।


महिमा हरिद्वार कुंभ मेले की: जानिए इसका इतिहास और महत्व
महिमा हरिद्वार कुंभ मेले की: जानिए इसका इतिहास और महत्व


कुंभ मेले की तिथियां

पौष पूर्णिमा - 13 जनवरी 2025

मकर संक्रांति - 14 जनवरी 2025

मौनी अमावस्या - 29 जनवरी 2025

बसंत पंचमी - 3 फरवरी 2025

माघी पूर्णिमा - 12 फरवरी 202l

महाशिवरात्रि - 26 फरवरी 2025

कुंभ मेला शाही स्नान

पौष पूर्णिमा 13 जनवरी 2025

हरिद्वार-कुंभ मेला का इतिहास 

सात पुरियों में से मायापुरी हरिद्वार के विस्तार के अंदर आता है। यहाँ प्रति बारहवें वर्ष कुम्भ का मेला लगता है। उसके छठे वर्ष अर्धकुम्भ पड़ता है। इस तीर्थ के कई नाम हैं- हरद्वार, हरिद्वार, गंगाद्वार, कुशावर्त । मायापुरी, हरिद्वार, कनखल, ज्वालापुर और भीमगोड़ा- इन पाँचों पुरियोंको मिलाकर हरिद्वार कहा जाता है।

राजा भगीरथ के पीछे चलने वाली अलकनन्दा गंगा सहस्त्रों पर्वतों को विदीर्ण करती हुई हरिद्वार की पावन भूमि पर उतरी हैं, जहाँ पूर्व काल में दक्षप्रजापति ने यज्ञेश्वर भगवान् विष्णुका यजन किया है, वह पुण्यदायक क्षेत्र (हरिद्वार) ही गंगाद्वार है, जो मनुष्यों के समस्त पापों का नाश करने वाला है। 

प्रजापति दक्ष के यज्ञ में इन्द्रादि सब देवता बुलाये गये थे और वे सब अपने-अपने गणोंके साथ यज्ञ में भाग लेने की इच्छा से वहाँ आये थे उसमें देवर्षि, शिष्य- प्रशिष्योंसहित शुद्ध अन्तःकरण वाले ब्रह्मर्षि तथा राजर्षि भी पधारे थे। 

इस यज्ञ में केवल पिनाकपाणि भगवान् शिव को छोड़कर अन्य सभी देवताओं को निमन्त्रित किया गया था। वे सभी देवता विमानों पर बैठकर अपनी प्रिय पत्नियोंके साथ दक्षप्रजापति के यज्ञोत्सव में जा रहे थे और प्रसन्नतापूर्वक आपस में उस उत्सव का वर्णन भी कर रहे थे।

जब कैलास पर रहने वाली देवी सती ने उनकी बातें सुनीं। तो वे भी पिता का यज्ञोत्सव देखने के लिये उत्सुक हुईं। माता सती ने महादेवजी से उस उत्सव में चलने की प्रार्थना कीं। उनकी बात सुनकर भगवान् शिव ने कहा-'देवि! वहाँ जाना कल्याणकर नहीं होगा।' किन्तु वे नहीं मानी और अकेले ही सती जी अपने पिता का यज्ञोत्सव देखनेके लिये चल दीं। 

माता सती वहाँ पहुँच तो गयीं, लेकिन वहां किसी ने उनका स्वागत-सत्कार नहीं किया। तब सती ने वहाँ अपने प्राण त्याग दिये। अतः वह स्थान एक उत्तम क्षेत्र बन गया। जो उस तीर्थ में स्नान करके देवताओं तथा पितरों का तर्पण करते हैं, वे देवीके अत्यन्त प्रिय होते हैं। वे भोग और मोक्षके प्रधान अधिकारी हो जाते हैं।

जब भगवान शिव को देवर्षि नारद द्वारा अपनी प्रिया सतीजी के प्राण-त्याग का समाचार मिला, तो उन्हें बहुत गुस्सा आया। भगवान् शंकर के क्रोध से वीरभद्र उत्पन्न हुए। वीरभद्र ने सबसे पहले गणों के साथ जाकर उस यज्ञका नाश कर दिया। फिर ब्रह्माजी की प्रार्थना से तुरन्त प्रसन्न होकर भगवान् शंकरने उस विकृत यज्ञको पुनः सम्पन्न किया। तब से वह अनुपम तीर्थ सम्पूर्ण पापों का नाश करने वाला तीर्थ बन गया । 

हर की पौड़ी का पहला नाम हरितीर्थ

उस तीर्थ में विधिपूर्वक स्नान करके मनुष्य जिस चीज़ या ईच्छा की कामना करता है, वह उसे अवश्य प्राप्त कर लेता है। जहाँ दक्ष तथा देवताओं ने यज्ञों के स्वामी साक्षात् अविनाशी भगवान् विष्णु का स्तवन किया था, वह स्थान हरितीर्थ के नामसे प्रसिद्ध है। जो मनुष्य उस हरिपदतीर्थ (हरिकी पैड़ी)-में विधिपूर्वक स्नान करता है, वह भगवान् विष्णुका प्रिय और भोग तथा मोक्षका प्रधान अधिकारी होता है। 

उससे पूर्व दिशा में त्रिगंग नाम से विख्यात क्षेत्र है, जहाँ सब लोग त्रिपथगा गंगाका साक्षात् दर्शन करते हैं। वहाँ स्नान करके देवताओं, ऋषियों, पितरों और मनुष्यों का श्रद्धापूर्वक तर्पण करने वाले पुरुष स्वर्गलोक में देवता की भाँति खुश रहते हैं। 

वहाँ से दक्षिण दिशा में कनखलतीर्थ है यहां पर दिन-रात उपवास और स्नान करके मनुष्य सब पापों से मुक्त हो जाता है। जो वहाँ वेदों में पारंगत विद्वान् ब्राह्मण को गोदान देता है, वह कभी वैतरणी नदी और यमराज को नहीं देखता है। वहाँ किये गये जप, होम, तप और दान अक्षय होते हैं।

वहाँसे पश्चिम दिशामें कोटितीर्थ है, जहाँ भगवान् कोटीश्वरका दर्शन करनेसे कोटि गुना पुण्य प्राप्त होता है और एक रात वहाँ निवास करने से पुण्डरीक-यज्ञ का फल मिलता है। 

इसी प्रकार वहाँ से उत्तर दिशामें सप्तगंग (सप्त सरोवर) नामसे विख्यात उत्तम तीर्थ है। वह सम्पूर्ण पातकोंका नाश करनेवाला है। वहाँ सप्तर्षियों के पवित्र आश्रम हैं, उन सबमें अलग-अलग स्नान और देवताओं एवं पितरोंका तर्पण करके मनुष्य ऋषिलोकको प्राप्त होता है। राजा भगीरथ जब देव नदी गंगा को ले आये, उस समय उन सप्तर्षियों की प्रसन्नता के लिये वे सात धाराओं में विभक्त हो गयीं। तबसे पृथ्वी पर वह सप्तगंग नामक तीर्थ विख्यात हो गया। 

वहाँसे परम उत्तम कपिलाहृद नामक तीर्थ में जाकर जो श्रेष्ठ ब्राह्मण को धेनु दान करता है, उसे सहस्त्र गोदानका फल मिलता है। इसके अलावा शन्तनु के ललित नामक उत्तम तीर्थमें जाकर विधिवत् स्नान और देवता आदिका तर्पण करके मनुष्य उत्तम गति पाता है।

यह वही स्थान है जहां राजा शन्तनु ने मनुष्य रूप में आयी हुई गंगा को विवाह कर प्राप्त किया और जहाँ गंगा ने प्रतिवर्ष एक-एक वसुको(पुत्रों) को जन्म देकर अपनी धारा में उनके शरीर को बहा दिया था। उन वसुओं का शरीर जहाँ गिरा वहाँ वृक्ष पैदा हो गया। जो मनुष्य वहाँ स्नान करता है, वह गंगादेवी के प्रसाद से कभी दुर्गतिमें नहीं पड़ता। 

वहाँसे भीमस्थल (भीमगोड़ा)-में जाकर जो पुण्यात्मा पुरुष स्नान करता है, वह इस लोकमें उत्तम भोग भोगकर शरीरका अन्त होनेपर स्वर्गलोकमें जाता है।


स्कन्द जी की द्वारा हरिद्वार की महिमा का वर्णन 

हरिद्वार की महिमा बताते हुए स्कन्द जी नारद जी से कहते हैं- 'हे नारद ! मैं तुम्हें मनुष्यों की मुक्तिका एक उपाय बताता हूँ, जो लोग एक बार भी श्री हरिद्वार में गंगा.स्नान करते हैं वे फिर संसार में जन्म नहीं लेते, चाहे करोड़ों कल्प बीत जायँ।'

'हे मुने ! साढ़े तीन करोड़ तीर्थ हरिद्वार तीर्थमें निवास करते हैं। जिसने हरिद्वार तीर्थमें स्नान किया, उसने समस्त तीर्थोंमें स्नान किया।'

ब्रह्मकुण्डसे दक्षिणकी ओर कुशावर्त नामक महातीर्थ है। यहाँ स्नान, दान, जप, होम, वेदादि पाठ, श्राद्ध तथा तर्पण आदि जो कुछ किया जाता है, वह करोड़ों गुना अधिक होता है।

हरिद्वार, कुशावर्त, बिल्वकेश, नीलपर्वत तथा कनखलतीर्थमें स्नान करनेसे मनुष्यको पुनर्जन्म नहीं लेना पड़ता।

पुण्यात्मा पुरुषोंको श्रीहरिद्वार के दर्शन होते हैं, विशेषकर इस तीर्थमें स्नान-दान आदि का माहात्म्य मेष संक्रान्ति में होता है।

जो इस क्षेत्र में बृहस्पति के कुम्भ राशि पर और सूर्य के मेष राशि पर रहते समय स्नान करता है, वह साक्षात् बृहस्पति और दूसरे सूर्यके समान तेजस्वी होता है।

सोमवती अमावास्या में अथवा अन्य किसी अमावास्या में एवं माघ, वैशाख तथा कार्तिक मास में इस हरिद्वार तीर्थ का दर्शन तथा स्नान आदि का बड़ा महत्व है।

ज्येष्ठ के महीने में शुक्ल पक्ष की दशमी (दशहरा, गंगाजन्म)-के दिन केवल स्नान करने से परमधामकी प्राप्ति होती है, जो कि योगियोंको भी दुर्लभ है।

हरिद्वार स्वर्ग के द्वार के समान

हरिद्वार स्वर्गके द्वारके समान है। इसमें संशय नहीं है। यहाँ जो एकाग्र होकर कोटि तीर्थ में स्नान करता है, उसे पुण्डरीक-यज्ञ का फल मिलता है तथा वह अपने कुलका उद्धार कर देता है। वहाँ एक रात निवास करनेसे सहस्र गोदानका फल मिलता है। सप्तगंगा, त्रिगंगा और शक्रावर्तमें विधिपूर्वक देवर्षि-पितृतर्पण करनेवाला पुण्यलोकमें प्रतिष्ठित होता है। जो कनखल में स्नान करके तीन रात उपवास करे। ऐसा करनेवाला अश्वमेध यज्ञका फल पाता है और स्वर्गगामी होता है।'

इतना ही नहीं, जो मानव दूर रहकर भी गंगाद्वार (हरिद्वार) का स्मरण करता है, वह उसी प्रकार सद्गति पाता है, जैसे अन्तकाल में श्रीहरि को स्मरण करने वाला पुरुष। मनुष्य शुद्ध भाव से हरिद्वार में जिस देवता का पूजन करता है, वह देवता परम प्रसन्न होकर उसके मनोरथों को पूर्ण कर देते है। 

जहाँ गंगा भूतल पर आयी हैं, वही तपस्या का स्थान है। वही जप का स्थल है और वही होम का स्थान है। जो मनुष्य नियमपूर्वक रहकर तीनों समय स्नान करके यहां गंगासहस्त्रनामका पाठ करता है, वह अक्षय संतति पाता है। जो नियमपूर्वक भक्तिभावसे गंगाद्वारमें पुराण सुनता है, वह अविनाशी पदको प्राप्त होता है। जो श्रेष्ठ मानव हरिद्वार की महिमा सुनता है अथवा भक्ति भाव से उसका पाठ करता है, वह भी स्नानका फल पाता है।

पौराणिक कथा 

स्कन्द जी नारद जी को कथा सुनाते हुए कहते हैं -

एक समय की बात है, कुरुक्षेत्र में नगर से बाहर कालिंग नामक एक पापी चाण्डाल रहता था। एक बार सूर्यग्रहण के समय आये हुए एक धनी वैश्य के पीछे वह लग गया और कुरुक्षेत्रसे उस वैश्य के लौटने के समय इसी हरिद्वार में आधी रात के वक्त उस पापी ने वैश्य के खेमे में चोरी करने की कोशिश की और दो पहरेदारोंको मार डाला।

 
इसी समय वैश्य के एक सेवक ने दूर से बाण मारा, जिससे भागता हुआ वह पापी भी मर गया। चाण्डाल द्वारा मारे गए वैश्य के दोनों पहरेदार और वह चाण्डाल-तीनों देवताओंके द्वारा लाये हुए विमानपर चढ़कर वैश्यसे बोले- 'देखो इस तीर्थ की महिमा। 

यह हरिद्वार पापियोंका भी कल्याण करनेवाला है।' ऐसा कहकर वे स्वर्गको चले गये। दूसरे दिन वैश्य ने अपने दोनों पहरेदारों के शरीरी का दाह-संस्कार कराकर उनकी हड्डियाँ हरिद्वार तीर्थ में डलवा दीं। इसके परिणामस्वरूप वे दोनों भाग्यवान् स्वर्गसे लौटकर भगवान् विष्णु के परमधाम में चले गये।  उसके बाद बुद्धिमान् वैश्य ने अपने घर जाकर सांसारिक कार्योंको धर्मपूर्वक करते हुए भगवान्‌की भक्तिमें मन लगाया और अन्त में इसी वैकुण्ठधाम की प्राप्ति कराने वाले तीर्थ में आकर मृत्यु को प्राप्त हुआ।

तो प्रिय पाठकों, कैसी लगी आपको पोस्ट ,हम आशा करते हैं कि आपकों पोस्ट पसंद आयी होगी। इसी के साथ विदा लेते हैं अगली रोचक, ज्ञानवर्धक जानकारी के साथ विश्वज्ञान मे फिर से मुलाकात होगी ,तब तक के लिय आप अपना ख्याल रखे, हंसते रहिए, मुस्कराते रहिए और औरों को भी खुशियाँ बांटते रहिए।

धन्यवाद ,हर हर महादेव

FAQS 

1. हरिद्वार में कुंभ मेला कब है?

हरिद्वार में कुंभ मेला प्रत्येक 12 वर्षों में आयोजित होता है। पिछला कुंभ मेला हरिद्वार में 2021 में हुआ था। इसलिए अगला कुंभ मेला हरिद्वार में 2033 में होने की संभावना है।

2. हरिद्वार कुंभ के लिए रजिस्ट्रेशन कैसे करें?

कुंभ मेले के लिए रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया राज्य सरकार द्वारा निर्धारित की जाती है। आगामी मेले के समय, आधिकारिक वेबसाइटों और स्थानीय प्रशासन द्वारा रजिस्ट्रेशन संबंधी जानकारी प्रदान की जाएगी।

3. हरिद्वार में कुंभ मेला क्यों लगता है?

हरिद्वार उन चार पवित्र स्थलों में से एक है, जहां अमृत की बूंदें गिरी थीं। इसलिए, यहां कुंभ मेले का आयोजन होता है। 

4. कुंभ मेले के पीछे की कहानी क्या है?

कुंभ मेले की उत्पत्ति समुद्र मंथन की कथा से जुड़ी है, जिसमें देवताओं और असुरों ने अमृत के लिए समुद्र मंथन किया था। अमृत कलश से अमृत की बूंदें चार स्थानों—प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक—में गिरीं, जहां कुंभ मेले का आयोजन होता है। 

5. कुंभ मेला में हिंदू क्या करते हैं?

कुंभ मेले में श्रद्धालु पवित्र नदियों में स्नान करते हैं, धार्मिक प्रवचनों में भाग लेते हैं, पूजा-अर्चना करते हैं और संतों के दर्शन करते हैं। यह आत्मशुद्धि और मोक्ष की प्राप्ति के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है।

6. कुंभ के मेले में कितने लोग आते हैं?

कुंभ मेला दुनिया का सबसे बड़ा शांतिपूर्ण समागम है, जिसमें लाखों तीर्थयात्री पवित्र नदियों में स्नान के लिए आते हैं। 

7. कुंभ और महाकुंभ में क्या अंतर है?

कुंभ मेला प्रत्येक 12 वर्षों में आयोजित होता है, जबकि महाकुंभ मेला प्रत्येक 144 वर्षों में प्रयागराज में आयोजित होता है। 

8. अगला महाकुंभ कब और कहां होगा?

अगला महाकुंभ मेला 2025 में प्रयागराज में आयोजित होगा, जो 13 जनवरी 2025 से 26 फरवरी 2025 तक चलेगा। 

9. कुंभ मेले में शाही स्नान क्या है?

शाही स्नान कुंभ मेले का मुख्य आकर्षण होता है, जिसमें विभिन्न अखाड़ों के साधु-संत पवित्र नदी में स्नान करते हैं। यह स्नान आध्यात्मिक महत्व रखता है और मेले के दौरान विशेष तिथियों पर आयोजित होता है।

10. उज्जैन में कुंभ का मेला कब लगेगा?

उज्जैन में कुंभ मेला, जिसे सिंहस्थ कुंभ कहा जाता है, प्रत्येक 12 वर्षों में आयोजित होता है। पिछला सिंहस्थ कुंभ 2016 में हुआ था, इसलिए अगला कुंभ मेला उज्जैन में 2028 में होने की संभावना है।

11. 2025 में माघ स्नान कब है?

2025 में माघ स्नान की प्रमुख तिथियां निम्नलिखित हैं

पौष पूर्णिमा 13 जनवरी 2025

मकर संक्रांति 14 जनवरी 2025

मौनी अमावस्या 29 जनवरी 2025

बसंत पंचमी 3 फरवरी 2025

माघी पूर्णिमा 12 फरवरी 2025

महाशिवरात्रि 26 फरवरी 2025

12. हरिद्वार में स्नान करने से क्या होता है?

हिंदू मान्यताओं के अनुसार, हरिद्वार में गंगा नदी में स्नान करने से पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह आत्मशुद्धि का एक महत्वपूर्ण साधन माना जाता है।

13. कुंभ मेला कब है 2025 तारीख और स्थान?

2025 में कुंभ मेला प्रयागराज में 13 जनवरी 2025 से 26 फरवरी 2025 तक आयोजित होगा। 

14. हरिद्वार में नहाने के लिए कौन सा घाट सबसे अच्छा है?

हरिद्वार में हर की पौड़ी सबसे प्रसिद्ध और पवित्र घाट है, जहां श्रद्धालु गंगा स्नान करते हैं। यहां गंगा आरती भी विशेष आकर्षण का केंद्र होती है।

15. हरिद्वार कितने दिन में घूम सकते हैं?

हरिद्वार के प्रमुख स्थलों का भ्रमण 2-3 दिनों में किया जा सकता है, जिसमें हर की पौड़ी, मनसा देवी मंदिर, चंडी देवी मंदिर, और अन्य धार्मिक स्थल शामिल हैं।

16. हरिद्वार में गंगा के कितने घाट हैं?

हरिद्वार में गंगा नदी के किनारे कई घाट हैं, जिनमें हर की पौड़ी, विश्नुघाट, और सुभाष घाट प्रमुख हैं।

17. हरिद्वार में रहना बेहतर है या ऋषिकेश में?

यह आपके उद्देश्य और पसंद पर निर्भर करता है

हरिद्वार- यदि आपका उद्देश्य धार्मिक स्थलों का दर्शन और गंगा स्नान है, तो हरिद्वार में रहना उपयुक्त है।

ऋषिकेश- यदि आप योग, ध्यान, और शांत वातावरण के साथ-साथ एडवेंचर (रिवर राफ्टिंग आदि) का आनंद लेना चाहते हैं, तो ऋषिकेश बेहतर विकल्प है।

18. हरिद्वार का पुराना नाम क्या था?

हरिद्वार का पुराना नाम मायापुर और गंगाद्वार था। इसे पौराणिक कथाओं में " तीर्थों का द्वार" भी कहा जाता है।

19. हरिद्वार में कौन सा ज्योतिर्लिंग है?

हरिद्वार में ज्योतिर्लिंग नहीं है, लेकिन पास ही केदारनाथ और सोमनाथ ज्योतिर्लिंग के दर्शन किए जा सकते हैं। हरिद्वार में हर की पौड़ी और मनसा देवी मंदिर जैसे धार्मिक स्थल हैं।
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