हर हर महादेव, प्रिय पाठकों! कैसे है आप लोग ,हम आशा करते है कि आप ठीक होंगे। आज की इस पोस्ट में हम जानेंगे तुलसीदास जी द्वारा रचित श्री रामचरित मानस मे वेशधारी साधुओं के संकेतों के बारे मे।
हाँ मित्रों! श्रीरामचरितमानस में संत तुलसीदास जी ने कलियुग के स्वभाव और उसके प्रभाव का विस्तार से वर्णन किया है। विशेष रूप से, वेषधारी साधुओं के विषय में भी उन्होंने संकेत दिए हैं।
तुलसीदास जी के समय में, धर्म के नाम पर दिखावा और पाखंड बढ़ रहा था। उन्होंने ऐसे साधुओं को वेशधारी कहा, जो केवल वस्त्र और आडंबर के माध्यम से धर्म का प्रदर्शन करते थे, लेकिन उनका वास्तविक आचरण धर्म के विपरीत होता था। ये साधु लोगों की भावनाओं और आस्थाओं का दुरुपयोग करते थे।
तुलसीदास जी के संकेत- वेशधारी साधुओं की पहचान।
तुलसीदास जी के संकेत- वेशधारी साधुओं की पहचान |
कलियुग का स्वभाव और साधुओं की चर्चा
तुलसीदास जी ने कलियुग को ऐसा युग बताया है जिसमें धर्म का ह्रास होगा और अधर्म का प्रभाव बढ़ेगा। उन्होंने स्पष्ट कहा है कि कलियुग में अनेक लोग केवल बाहरी आडंबर और वेषभूषा के माध्यम से धर्म का प्रदर्शन करेंगे, लेकिन उनके आचरण और हृदय में धर्म नहीं होगा। जो आज समय मे आप देख रहे होंगे।
बाहरी आडंबर और कपट का वर्णन
तुलसीदास जी कहते हैं
"कलिजुग सोषहिं संतन्ह कहुँ, धरम न राखहिं कोउ।
हरि न भजहिं नर मोह बस, बिषय बस जिन्ह दोउ।"
इसका अर्थ है कि कलियुग में साधु और संतों का उपहास होगा। लोग धर्म का वास्तविक पालन न करके केवल दिखावे पर जोर देंगे।
वेषधारी साधुओं की विशेषता
तुलसीदास जी ने ऐसे साधुओं का उल्लेख किया है जो दिखने में धर्मात्मा लगेंगे लेकिन उनके हृदय में पाखंड और कपट भरा होगा।
"तनु कंचन मृग जिमि लुभावन। परिहरि पाइ परम हित दावन।"
(अरण्य कांड)
यहां तुलसीदास जी स्पष्ट रूप से कहते हैं कि कुछ लोग बाहर से आकर्षक और धार्मिक प्रतीत होंगे, लेकिन भीतर से उनका आचरण लोक और धर्म को क्षति पहुंचाने वाला होगा।
यहां तुलसीदास जी ने ऐसे साधुओं की तुलना सुनहरे हिरण से की है, जो देखने में तो आकर्षक होते हैं, लेकिन उनके पीछे भागने से जीवन का कल्याण नहीं होता।
तुलसीदास जी का सन्देश
तुलसीदास जी ने ऐसे पाखंडी साधुओं से सावधान रहने की प्रेरणा दी है। उनका कहना है कि धर्म केवल वेषधारण या दिखावे का विषय नहीं है, बल्कि सच्चे मन, श्रद्धा, और सेवा का परिणाम है।
सच्चा साधु कौन?
तुलसीदास जी ने सच्चे साधु की पहचान यह बताई
- जो निःस्वार्थ होकर समाज की सेवा करें।
- जिनका मन, वचन और कर्म एक समान हों।
- जो भगवान की भक्ति में लीन हों और लोगों को सन्मार्ग दिखाएं।
पाखंड से बचने की प्रेरणा
कलियुग में साधुओं और धर्म के नाम पर होने वाले आडंबर को लेकर तुलसीदास जी ने समाज को सजग रहने का सुझाव दिया।
भविष्यवाणी की व्याख्या
यह कहना उचित होगा कि संत तुलसीदास जी ने अपने समय में जो देखा और अनुभव किया, उसका वर्णन करते हुए उन्होंने कलियुग के लिए एक मार्गदर्शन दिया। उनकी यह व्याख्या आधुनिक समय में भी प्रासंगिक है, क्योंकि समाज में धर्म के नाम पर पाखंड और स्वार्थ का प्रदर्शन आज भी देखने को मिलता है।
तुलसीदास जी का उद्देश्य केवल आलोचना करना नहीं था, बल्कि लोगों को धर्म की सच्ची परिभाषा समझाना था। उन्होंने सच्चे साधु और भक्त बनने की प्रेरणा दी है।
तो प्रिय पाठकों, कैसी लगी आपको पोस्ट ,हम आशा करते हैं कि आपकों पोस्ट पसंद आयी होगी। इसी के साथ विदा लेते हैं अगली रोचक, ज्ञानवर्धक जानकारी के साथ विश्वज्ञान मे फिर से मुलाकात होगी ,तब तक के लिय आप अपना ख्याल रखे, हंसते रहिए, मुस्कराते रहिए और औरों को भी खुशियाँ बांटते रहिए।
धन्यवाद ,हर हर महादेव
FAQS
तुलसीदास जी ने कलियुग के साधुओं के बारे में क्या बताया है?
तुलसीदास जी ने श्रीरामचरितमानस में कलियुग के साधुओं का वर्णन किया है। उन्होंने संकेत दिया कि कलियुग में कई साधु केवल दिखावे के लिए धर्म का पालन करेंगे। बाहरी आडंबर में वे धार्मिक लग सकते हैं, लेकिन उनके आचरण और हृदय में कपट और स्वार्थ होगा।
वेशधारी साधुओं की पहचान कैसे करें?
तुलसीदास जी ने वेशधारी साधुओं की पहचान के लिए कहा है कि वे देखने में आकर्षक और धर्मात्मा लग सकते हैं, लेकिन उनका उद्देश्य स्वार्थ और छलावा होता है। ऐसे साधु धर्म का पालन नहीं करते, बल्कि धर्म का उपयोग व्यक्तिगत लाभ के लिए करते हैं।
तुलसीदास जी ने पाखंड से बचने की क्या प्रेरणा दी है?
तुलसीदास जी ने पाखंड और धर्म के नाम पर होने वाले दिखावे से सावधान रहने की प्रेरणा दी है। उन्होंने कहा कि धर्म केवल वेषधारण या बाहरी दिखावे का विषय नहीं है, बल्कि यह सच्चे मन, श्रद्धा, और सेवा से जुड़ा हुआ है।
कलियुग के वेशधारी साधुओं के बारे में तुलसीदास जी के संदेश का आधुनिक समय में क्या महत्व है?
तुलसीदास जी का संदेश आज भी प्रासंगिक है। उन्होंने दिखावे और आडंबर से बचने और सच्चे धर्म की ओर प्रेरित किया। आज भी धर्म के नाम पर कपट और स्वार्थ देखने को मिलता है, इसलिए उनके संदेश को समझकर सही और गलत की पहचान करना आवश्यक है।
तुलसीदास जी का उद्देश्य इन साधुओं की आलोचना करना था या मार्गदर्शन देना?
तुलसीदास जी का उद्देश्य केवल आलोचना करना नहीं था। वे समाज को धर्म की सच्ची परिभाषा समझाना चाहते थे और लोगों को सच्चे साधु बनने की प्रेरणा देना उनका मुख्य उद्देश्य था।