हर हर महादेव प्रिय पाठकों, कैसे हैं आप? आशा करते हैं कि आप सुरक्षित होंगे और भगवान शिव की कृपा आप पर बनी रहे।
प्रिय पाठकों, आज हम एक अलग और ज्ञान से भरी हुई कहानी लेकर आए हैं। यह कहानी चार युगों की है। इस कहानी में आपको पता चलेगा कि कलियुग ने भगवान शिव से न्याय की मांग क्यों की। तो ध्यानपूर्वक इस कहानी को पढ़ें ताकि आपके मन में कोई संदेह न रह जाए। आइए, इस रोचक कहानी की शुरुआत करें।
भगवान शिव के दरबार में न्याय मांगता कलयुग।
भगवान शिव के दरबार में न्याय मांगता कलयुग |
एक समय की बात है जब चारों युग – सत्ययुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग – एक साथ बैठे हुए थे। अचानक चारों युगों के बीच बहस छिड़ गई। सत्ययुग ने गर्व से कहा,
तुम सब मुझसे छोटे हो, मेरे बराबर कैसे हो सकते हो?
यह सुनकर त्रेतायुग बोला,
तुम्हें सबसे बड़ा कौन कहता है? असली श्रेष्ठता मेरे पास है। मैं तुमसे कहीं ज्यादा महान हूं।”
द्वापरयुग ने भी अपना पक्ष रखते हुए कहा,
तुम दोनों गलत हो। मेरे समय में सबसे ज्यादा पराक्रम और दिव्यता रही है। मैं तुमसे बड़ा हूं।
जब तीनों युग आपस में लड़ रहे थे, तो कलियुग ने कहा,
तुम सबको सच्चाई नहीं पता। असल में, मैं सबसे बड़ा हूं। मेरे बिना यह सृष्टि अधूरी है।
न्याय के लिए कैलाश की ओर प्रस्थान
चारों युगों के बीच विवाद बढ़ता ही गया। अंततः उन्होंने तय किया कि यह निर्णय वे स्वयं नहीं कर सकते। सभी ने मिलकर कहा,
चलो, हम भगवान शिव के पास चलते हैं। वही हमारे बीच निर्णय करेंगे कि कौन सबसे बड़ा है।
चारों युग कैलाश पर्वत पहुंचे। वहां भगवान शिव के द्वारपालों ने उन्हें रोका और आने का कारण पूछा।
युगों ने कहा,हम भगवान शिव से मिलने आए हैं। कृपया उन्हें हमारे आगमन की सूचना दें। द्वारपालों ने भगवान शिव को यह बात बताई। शिवजी ने कहा, उन्हें आदरपूर्वक भीतर लाओ।
शिवजी के समक्ष विवाद
चारों युग शिवजी के समक्ष पहुंचे और उन्हें प्रणाम किया। शिवजी ने कहा,
आप सबका स्वागत है। बताइए, आपके आगमन का कारण क्या है?
सत्ययुग ने कहा,
भगवान, हम चारों के बीच यह विवाद है कि कौन सबसे बड़ा और श्रेष्ठ है। कृपया आप हमारे बीच न्याय करें।
मैं तभी निर्णय कर सकता हूं जब आप सब अपना पक्ष रखें। सत्ययुग, तुम पहले बताओ कि तुम अपने आप को सबसे बड़ा क्यों मानते हो।
सत्ययुग, त्रेतायुग और द्वापरयुग का पक्ष
सत्ययुग ने कहा,
भगवान, मेरी अवधि सबसे लंबी है – 17 लाख साल। मेरे समय में मनुष्य सबसे धार्मिक और पवित्र थे। इसलिए मैं सबसे बड़ा हूं।
त्रेतायुग ने बीच में कहा,
सिर्फ समय से कोई बड़ा नहीं होता। मेरे काल में भगवान श्रीराम का जन्म हुआ, जिन्होंने धर्म और मर्यादा की शिक्षा दी। मेरे काल में रावण जैसे शक्तिशाली योद्धा भी थे।
द्वापरयुग ने कहा,
मेरे काल में भगवान श्रीकृष्ण का अवतार हुआ, जिन्होंने धर्म की स्थापना के लिए महाभारत जैसे महान कार्य किए। मेरे समय में भीम, अर्जुन और कर्ण जैसे योद्धा हुए। इसीलिए मैं सबसे श्रेष्ठ हूं।
कलियुग का पक्ष
कलियुग ने कहा,
भगवान, इन तीनों की बातें अपनी जगह सही हैं, लेकिन मेरे काल में मनुष्य सबसे ज्यादा बुद्धिमान है। विज्ञान और तकनीक का विकास मेरे काल में हुआ। मेरे समय में मनुष्य को अपने कर्मों का फल तुरंत मिलता है। मेरे काल में ज्ञान का विकास हुआ है, इसलिए मैं सबसे श्रेष्ठ हूं।
शिवजी की परीक्षा
भगवान शिव के दरबार में न्याय मांगता कलयुग |
भगवान शिव ने सोचा कि चारों के तर्क सही हैं, लेकिन निर्णय करना इतना आसान नहीं है। तब उन्होंने चारों युगों की परीक्षा लेने का निश्चय किया। शिवजी ने कहा,
चारों युगों को अपने-अपने समय के एक प्रतिनिधि को भेजना होगा, जो एक भारी लोहे के पात्र (पारस) में चावल पकाकर मेरे गणों को खिलाएगा। जो यह कार्य सफलतापूर्वक करेगा, वही श्रेष्ठ होगा।
सत्ययुग, त्रेतायुग और द्वापरयुग के प्रतिनिधियों ने बड़ी मेहनत से यह कार्य पूरा किया। अब बारी थी कलियुग की।
कलियुग की बारी
भगवान शिव ने कहा,
कलियुग, यह पात्र तुम्हारे समय के व्यक्ति के लिए बहुत भारी है। तुम अपने युग के किसी व्यक्ति को भेजो और परीक्षा दो।
कलियुग ने विनम्रता से कहा,
भगवान, मुझे भी अपना प्रयास करने दें। मैं यह कार्य अवश्य पूरा करूंगा।
कलियुग की बुद्धिमानी
कलियुग ने अपने युग का एक व्यक्ति भेजा। उस व्यक्ति ने देखा कि पात्र बहुत भारी है और इसे उठाना असंभव है। उसने अपनी बुद्धि का उपयोग किया। उसने लकड़ियां जलाकर पात्र को वहीं पकने दिया। चावल पकाकर उसने गणों को खिलाया।
भगवान शिव ने यह देखकर कहा,
कलियुग, तुमने यह कार्य अपने बल से नहीं, बल्कि बुद्धि से पूरा किया। यही तुम्हारी श्रेष्ठता है।
न्याय का निर्णय
शिवजी ने कहा,
चारों युग अपने-अपने स्थान पर महत्वपूर्ण हैं। सत्ययुग धर्म का प्रतीक है, त्रेतायुग मर्यादा का, द्वापरयुग पराक्रम का और कलियुग बुद्धि का। लेकिन तुम सबकी अपनी-अपनी खूबियां और कमजोरियां हैं। कोई भी युग अकेले श्रेष्ठ नहीं है। सभी युग मिलकर ही समय चक्र को पूर्ण बनाते हैं।
प्रिय पाठकों, भगवान शिव की इस कथा से हमें यह सीख मिलती है कि हर समय, हर व्यक्ति और हर युग की अपनी विशेषता होती है। हमें सभी का सम्मान करना चाहिए। हर हर महादेव!