नैना देवी: जहाँ गिरीं माँ सती की दिव्य दृष्टि

नैना देवी: जहाँ गिरीं माँ सती की दिव्य दृष्टि

भगवान शिव द्वारा सती का शरीर उठाए जाने पर उनकी आँखें जहाँ गिरीं, वहाँ नैना देवी शक्तिपीठ बना – दिव्य दृश्य


जय माता दी प्रिय पाठकों,

कैसे हैं आप लोग, हम आशा करते हैं कि आप ठीक होंगे।

मित्रों! आज की इस post मे हम जानेंगे नैना देवी मंदिर जहां गिरी माँ सती की दिव्य दृष्टि और उनकी शक्ति के रहस्यों की कथा तथा जानेंगे कि नैनीताल से इसका क्या संबंध है, और नैनीताल नाम क्यों पड़ा? आइए इस रहस्य को एक सरल, भावपूर्ण, और ऐतिहासिक शैली में समझते हैं।

1. नैना देवी कौन हैं?

नैना देवी हिन्दू धर्म की एक प्रमुख शक्ति स्वरूपा हैं। उनका नाम नैना यानी आंखों से जुड़ा है। वह माँ सती (भगवान शिव की अर्धांगिनी) का ही एक रूप मानी जाती हैं।

पौराणिक मान्यता के अनुसार, जब सती माता ने यज्ञ में अपने प्राण त्याग दिए और भगवान शिव उनका शरीर लेकर विलाप करने लगे, तब सम्पूर्ण ब्रह्मांड असंतुलन में चला गया। भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को खंड-खंड कर दिया ताकि शिव का मोह समाप्त हो और सृष्टि फिर से संतुलन में आए।

जहाँ-जहाँ सती के अंग गिरे, वहाँ-वहाँ शक्तिपीठ बने।

नैना देवी शक्तिपीठ उसी शृंखला में आता है।

सती से पार्वती रूप में जन्म लेने की कथा जानने के लिए पढ़े-पार्वती माता का जन्म और शिव को पाने की तपस्या

2. नैनीताल से क्या संबंध है?

नैना देवी का सीधा संबंध नैनीताल से है, क्योंकि लोककथाओं के अनुसार—

सती माता की आँखें (नयन या नैना) इसी स्थान पर गिरी थीं, और इसलिए इसे नैना देवी शक्तिपीठ कहा गया।

इस स्थान पर एक दिव्य झील है, जिसे नैनी झील कहा जाता है। मान्यता है कि यह झील माँ की आँखों के गिरने से उत्पन्न हुई थी। इसीलिए यहाँ के मंदिर को नैना देवी मंदिर कहा जाता है, जो झील के उत्तर में स्थित है।

3. नैनीताल नाम क्यों पड़ा?

नैनी शब्द का अर्थ होता है आंखें और

ताल का अर्थ होता है झील

तो नैनीताल का अर्थ हुआ —

आंखों की झील या जहाँ नैना (आंखों) की शक्ति विद्यमान है।

यह नाम इस स्थान की पवित्रता और पौराणिकता को दर्शाता है। यहाँ की नैनी झील और नैना देवी मंदिर उस दिव्य शक्ति के प्रतीक हैं।

4. नैना देवी मंदिर का संक्षिप्त इतिहास

यह मंदिर नैनी झील के उत्तरी किनारे पर स्थित है।

यहाँ माता की दोनों आंखों की प्रतीक रूप में पूजा होती है।

माता की मूर्ति के साथ गणेश जी और काली माता की भी प्रतिमाएँ हैं।

1880 में एक भयंकर भूस्खलन में पुराना मंदिर ध्वस्त हो गया था। बाद में स्थानीय श्रद्धालुओं और भक्तों द्वारा इसे फिर से बनाया गया।

5. आध्यात्मिक रहस्य और आस्था

यह शक्तिपीठ उन 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है, जहाँ श्रद्धा से माँ के नेत्रों की पूजा होती है।

ऐसा माना जाता है कि जो व्यक्ति यहां सच्चे मन से माँ की आराधना करता है, उसकी दृष्टि (आंतरिक और बाहरी) दोनों निर्मल हो जाती है।

नैना देवी माँ आत्मज्ञान की प्रतीक मानी जाती हैं — जो दिव्य दृष्टि देती हैं।

माँ के 51 शक्तिपीठों में से एक माँ कामाख्या मंदिर की पूरी जानकारी के लिए पढ़े कामाख्या मंदिर कहाँ पर है और इसकी उत्पत्ति कैसे हुई? 

6. नैना देवी हिमाचल और नैना देवी उत्तराखंड में क्या अंतर है?

आपको यह जानकर आश्चर्य हो सकता है कि "नैना देवी" नाम के दो प्रसिद्ध स्थान हैं-

1. नैना देवी (उत्तराखंड, नैनीताल) – जहाँ सती माता की आंखें गिरी थीं।

2. नैना देवी (हिमाचल प्रदेश, बिलासपुर ज़िले में) – जहाँ एक अन्य कथा जुड़ी है जिसमें माँ ने राक्षसों का वध किया।

दोनों शक्तिपीठ हैं और दोनों की अपनी विशेषता है, पर नैनीताल का नैना देवी मंदिर 51 शक्तिपीठों में शामिल है, क्योंकि यह अंगों के गिरने की कथा से जुड़ा है।

7 संक्षिप्त जानकारी 

नैनीताल का नाम माँ सती की आंखों से जुड़ा है।

यहाँ की नैनी झील और नैना देवी मंदिर इस पौराणिक घटना के चिह्न हैं।

यह स्थान केवल पर्यटन स्थल नहीं, बल्कि एक अत्यंत पवित्र शक्तिपीठ है।

यहाँ आने वाला हर भक्त दृष्टि, ज्ञान, और आस्था की शक्ति प्राप्त करता है।

यदि आप कभी नैनीताल जाएं, तो झील के किनारे बैठकर माँ नैना देवी को नमन करना न भूलें। वहाँ की शांति और दिव्यता स्वयं में माँ की उपस्थिति का अनुभव कराएगी।

जय नैना देवी।

जय माँ शक्ति।

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे।

माँ कामाख्या की अद्भुत शक्ति का रहस्य जानने के लिए पढ़े कामरूप की मायावी स्त्रियाँ करती थीं पुरुषों का शोषण ,एक रहस्यमय सच्ची कहानी

FAQs (अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न)

नैना देवी मंदिर कहाँ स्थित है?

नैना देवी मंदिर उत्तराखंड राज्य के नैनीताल शहर में नैनी झील के उत्तरी किनारे पर स्थित है।

नैना देवी मंदिर का नाम 'नैना' क्यों पड़ा?

पौराणिक कथा के अनुसार, जब देवी सती का शरीर भगवान शिव ने उठाया था, तब उनके अंग जहाँ-जहाँ गिरे, वहाँ शक्तिपीठ बने। कहा जाता है कि सती की आँखें (नयन) यहाँ गिरी थीं, इसलिए इस स्थान को 'नैना देवी' कहा गया।

क्या नैना देवी मंदिर शक्तिपीठ है?

हाँ, यह मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है, जहाँ देवी सती के नयन गिरे थे।

नैनीताल का नाम कैसे पड़ा?

नैनी का अर्थ है 'आँखें' और 'ताल' का अर्थ है 'झील'। चूँकि यह झील नैना देवी मंदिर के निकट स्थित है और देवी के नेत्रों से संबंधित कथा जुड़ी है, इसलिए इस स्थान का नाम 'नैनीताल' पड़ा।

नैना देवी मंदिर में क्या विशेष पूजा होती है?

नवरात्रि में यहाँ विशेष पूजा और मेले का आयोजन होता है। श्रद्धालु माँ नैना देवी की प्रतिमा के दर्शन के लिए दूर-दूर से आते हैं।

यदि आप कभी नैनीताल जाएं, तो झील के किनारे बैठकर माँ नैना देवी को नमन करना न भूलें। वहाँ की शांति और दिव्यता स्वयं में माँ की उपस्थिति का अनुभव कराएगी।

तो प्रिय पाठकों, आशा करते हैं कि आपको पोस्ट पसंद आई होगी। ऐसी ही रोचक जानकारियों के साथ विश्वज्ञान मे फिर से मुलाकात होगी, तब तक के लिए आप अपना ख्याल रखें, हंसते रहिए,मुस्कराते रहिए और औरों को भी खुशियाँ बांटते रहिए। 

जय नैना देवी,जय माँ शक्ति।

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे।

धन्यवाद, 

Previous Post Next Post