हर हर महादेव मित्रों
विश्वज्ञान में आपका स्वागत है। आज इस पोस्ट में हम शिव स्तुति पढ़ेंगे और हिंदी अर्थ सहित जानेंगे की किस प्रकार हिमालय जी ने स्तुति कर भगवान् शिव को प्रसन्न किया।
हिमालयकृतं शिवस्तोत्रं संस्कृत में
हिमालयकृतं शिवस्तोत्रं | हिमालयकृतं शिवस्तोत्रं हिंदी अर्थ सहित |
त्वं ब्रह्मा सृष्टिकर्ता च त्वं विष्णुः परिपालकः ।
त्वं शिवः शिवदोऽनन्तः सर्वसंहारकारकः ।।
त्वमीश्वरो गुणातीतो ज्योतीरूपः सनातनः ।
प्रकृतिः प्रकृतीशश्च प्राकृतः प्रकृतेः परः ।।
नानारूपविधाता त्वं भक्तानां ध्यानहेतवे ।
येषु रूपेपु यत्प्रीतिस्तत्तद्रूपं बिभर्षि च ।।
सूर्यस्त्वं सृष्टिजनक आधारः सर्वतेजसाम ।
सोमस्त्वं सस्यपाता च सततं शीतरश्मिना ।।
वायुस्त्वं वरुणस्त्वं च विद्वांश्च विदुषां गुरुः ।
इन्द्रस्त्वं देवराजश्च कालो मृत्युर्मस्तथा ।।
मृत्युञ्जयो मृत्युमृत्युः कालकालो यमान्तकः ।
वेदस्त्वं वेदकर्ता च वेदवेदाङ्गपारगः ।।
विदुषां जनकस्त्वं च विद्वांश्च विदुषां गुरुः ।
मन्त्रस्त्वं हि जपस्त्वं हि तपस्त्वं तत्फलप्रदः ।।
वाक त्वं रागाधिदेवी त्वं तत्कर्ता तद्गुरुः स्वयम ।
अहो सरस्वतीबीज कस्त्वां स्तोतुमिहेश्वरः ।।
इत्येवमुक्त्वा शैलेन्द्रस्तस्थौ धृत्वा पदांबुजम ।
तत्रोवास तमाबोध्य चावरुह्य वृषाच्छिवः ।।
स्तोत्रमेतन्महापुण्यं त्रिसन्ध्यं यः पठेन्नरः ।
मुच्यते सर्वपापेभ्यो भयेभ्यश्च भवार्णवे ।।
अपुत्रो लभते पुत्रं मासमेकं पठेद्यदि ।
भार्याहीनो लभेद्भार्यां सुशीलां सुमनोहराम ।।
चिरकालगतं वस्तु लभते सहसा ध्रुवम।
राज्यभ्रष्टो लभेद्राज्यं शङ्करस्य प्रसादतः।।
कारागारे श्मशाने च शत्रुग्रस्तेऽतिसङ्कटे। गभीरेऽतिजलाकीर्णे भग्नपोते विषादने।।
रणमध्ये महाभीते हिंस्रजन्तुसमन्विते,
यः पठेच्छ्रद्धया सम्यक स्तोत्रमेतज्जगद्गुरोः ।
सर्वतो मुच्यते स्तुत्वा शङ्करस्य प्रसादतः।।
इति श्रीब्रह्मवैवर्ते महापुराणे श्रीकृष्णजन्मखण्डे हिमालयकृतं शिवस्तोत्रं संपूर्णम ॥
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हिमालयकृतं शिवस्तोत्रं हिंदी अर्थ सहित
त्वं ब्रह्मा सृष्टिकर्ता च त्वं विष्णुः परिपालकः ।
त्वं शिवः शिवदोऽनन्तः सर्वसंहारकारकः।।
हिमालय ने कहा — ( हे परम शिव ) आप ही इस सृष्टि को चलाने वाले (सृष्टिकर्ता ) ब्रह्मा हैं। आप ही इस जगत के पालनहारअथार्त पालन -पोषण करने वाले विष्णु हैं। आप ही सबका संहार (अंत )करनेवाले अनन्त हैं और आप ही सबका कल्याण करने वाले कल्याणकारी शिव हैं ।।१।।
त्वमीश्वरो गुणातीतो ज्योतीरूपः सनातनः
प्रकृतिः प्रकृतीशश्च प्राकृतः प्रकृतेः परः।।
हे भोलेनाथ !आप गुणातीत ईश्वर है अथार्त जिनके गुणों को न कहा जा सके ,जो गुणों से भरपूर हो ,आप सनातन ज्योतिस्वरूप (सदियों से चली आ रही दिव्य रौशनी )हैं। प्रकृति और प्रकृति के ईश्वर हैं अथार्त वह मूलतत्व जिसका परिणाम जगत है । प्राकृत पदार्थ होते हुए भी प्रकृति से परे हैं ।।२।।
नानारूपविधाता त्वं भक्तानां ध्यानहेतवे ।
येषु रूपेपु यत्प्रीतिस्तत्तद्रूपं बिभर्षि च ।।
हे शिव !आप इतने दयालु है की आप भक्तों के ध्यान(भजन ) करने के लिए अनेक रूप धारण करते हैं। जो मनुष्य जिस रूप में आपको प्यार करता है ,जिस रूप में आपको देखना चाहता है , आप उसके लिए वही रूप धारण कर लेते हैं ।। ३।.
सूर्यस्त्वं सृष्टिजनक आधारः सर्वतेजसाम ।
सोमस्त्वं सस्यपाता च सततं शीतरश्मिना।।
आप ही सृष्टि के जन्मदाता (जीवन देने वाले )सूर्य हैं। समस्त तेजों के आधार हैं। आप ही शीतल किरणों से सदा शस्यों का पालन करनेवाले सोम हैं ।।४।।
वायुस्त्वं वरुणस्त्वं च विद्वांश्च विदुषां गुरुः ।
इन्द्रस्त्वं देवराजश्च कालो मृत्युर्मस्तथा।।
आप ही हवा (वायु ), पानी (वरुण) और सर्वदाहक अग्नि हैं। आप ही देवराज इंद्र , काल , मृत्यु तथा यम हैं ।।५।।
मृत्युञ्जयो मृत्युमृत्युः कालकालो यमान्तकः।
वेदस्त्वं वेदकर्ता च वेदवेदाङ्गपारगः।।
मृत्युंजय होने के कारण मृत्यु की (मृत्यु को जीत लेने बाद )भी मृत्यु , काल के भी काल तथा यम के भी यम हैं। वेद , वेदकर्ता तथा वेद -वेदांगों के पारंगत विद्वान् भी आप ही हैं।।६।।
विदुषां जनकस्त्वं च विद्वांश्च विदुषां गुरुः।
मन्त्रस्त्वं हि जपस्त्वं हि तपस्त्वं तत्फलप्रदः।।
आप ही विद्वानों के जनक , विद्वान् तथा विद्वानों के गुरु हैं। आप ही मंत्र , जप , तप और उनके फलदाता हैं।।७।।
वाक त्वं रागाधिदेवी त्वं तत्कर्ता तद्गुरुः स्वयम।
अहो सरस्वतीबीज कस्त्वां स्तोतुमिहेश्वरः।।
आप ही वाक् (शब्द )और वाणी (बोली )की अधिष्ठात्री देवी हैं। आप ही उनके सृष्टा और गुरु हैं। अहो ! सरस्वती बीजस्वरूप आपकी स्तुति यहां कौन कर सकता है अथार्त किसी मनुष्य या देवताओं में इतनी सामर्थ नहीं जी आपकी स्तुति कर सके। ।.८। .
इत्येवमुक्त्वा शैलेन्द्रस्तस्थौ धृत्वा पदांबुजम।
तत्रोवास तमाबोध्य चावरुह्य वृषाच्छिवः।।
ऐसा कहकर पर्वतराज हिमालय (गिरिराज हिमालय ) ने भगवान शिवजी के चरणकमलों (पैरौं ) को पकड़कर खड़े रहे।भगवान शिव ने वृषभ (बैल ) से उतरकर शैलराज (पर्वत राज किमालय ) को प्रबोध (सत्यज्ञान) देकर वहाँ निवास किया।।९।।
स्तोत्रमेतन्महापुण्यं त्रिसन्ध्यं यः पठेन्नरः।
मुच्यते सर्वपापेभ्यो भयेभ्यश्च भवार्णवे ।।
जो मनुष्य तीनों समय इस परम् पुण्य व दिव्य स्तोत्र का पाठ करता है , वह भवसागर (संसाररूपी सागर )में रहकर भी समस्त पापों तथा भयों से मुक्त हो जाता है ।.१०।.
अपुत्रो लभते पुत्रं मासमेकं पठेद्यदि ।
भार्याहीनो लभेद्भार्यां सुशीलां सुमनोहराम ।।
यदि किसी मनुष्य के पास पुत्र न हो तो वो अगर एक महीने तक इस सुंदर व दिव्य पाठ सुने या करे तो उसे पुत्र प्राप्ति अवश्य होती है। इसी तरह यदि कोई भार्याहीन है अथार्त जिस आदमी की शादी न हो रही वह इस का श्रवण करे तो उसे सुंदर व सुशील भार्या (पत्नी ) की प्राप्ति होती है ।.११।.
चिरकालगतं वस्तु लभते सहसा ध्रुवम।
राज्यभ्रष्टो लभेद्राज्यं शङ्करस्य प्रसादतः।।
वह बहुत समय से खोयी हुई वस्तु को सरलता तथा अवश्य पा लेता है। जिस व्यक्ति का राज्य पूरी तरह नष्ट हो चुका हो या बहुत ऊँचे पद निचे गिर गया हो वह मनुष्य भगवान भोलेनाथ के आशीर्वाद से दुबारा उस राज्य व पद को प्राप्त कर लेता है ।.१२।.
कारागारे श्मशाने च शत्रुग्रस्तेऽतिसङ्कटे। गभीरेऽतिजलाकीर्णे भग्नपोते विषादने।।
रणमध्ये महाभीते हिंस्रजन्तुसमन्विते,
यः पठेच्छ्रद्धया सम्यक स्तोत्रमेतज्जगद्गुरोः ।
सर्वतो मुच्यते स्तुत्वा शङ्करस्य प्रसादतः।।
कारागार , श्मशान और शत्रु संकट में पर तथा अत्यंत जल से भरे गंभीर जलाशय में नाव टूट जाने पर , विष खा लेने पर , महाभयंकर संग्राम के बीच फंस जानेपर तथा हिंसक जंतुओं के बीच घिर जानेपर इस स्तुति का पाठ करके मनुष्य भगवान शंकर की कृपा से समस्त भयों से मुक्त हो जाता है।.१३ -१४।.
इति श्रीब्रह्मवैवर्ते महापुराणे श्रीकृष्णजन्मखण्डे हिमालयकृतं शिवस्तोत्रं संपूर्णम ॥
हिमालयकृतं शिवस्तोत्रं हिंदी में
हिमालय ने कहा — ( हे परम शिव ) आप ही इस सृष्टि को चलाने वाले (सृष्टिकर्ता ) ब्रह्मा हैं। आप ही इस जगत के पालनहारअथार्त पालन -पोषण करने वाले विष्णु हैं। आप ही सबका संहार (अंत )करनेवाले अनन्त हैं और आप ही सबका कल्याण करने वाले कल्याणकारी शिव हैं ।।१।।
हे भोलेनाथ !आप गुणातीत ईश्वर है अथार्त जिनके गुणों को न कहा जा सके ,जो गुणों से भरपूर हो ,आप सनातन ज्योतिस्वरूप (सदियों से चली आ रही दिव्य रौशनी )हैं। प्रकृति और प्रकृति के ईश्वर हैं अथार्त वह मूलतत्व जिसका परिणाम जगत है । प्राकृत पदार्थ होते हुए भी प्रकृति से परे हैं ।।२।।
हे शिव !आप इतने दयालु है की आप भक्तों के ध्यान(भजन ) करने के लिए अनेक रूप धारण करते हैं। जो मनुष्य जिस रूप में आपको प्यार करता है ,जिस रूप में आपको देखना चाहता है , आप उसके लिए वही रूप धारण कर लेते हैं ।। ३।.
आप ही सृष्टि के जन्मदाता (जीवन देने वाले )सूर्य हैं। समस्त तेजों के आधार हैं। आप ही शीतल किरणों से सदा शस्यों का पालन करनेवाले सोम हैं ।।४।।
आप ही हवा (वायु ), पानी (वरुण) और सर्वदाहक अग्नि हैं। आप ही देवराज इंद्र , काल , मृत्यु तथा यम हैं ।।५।।
मृत्युंजय होने के कारण मृत्यु की (मृत्यु को जीत लेने के बाद )भी मृत्यु , काल के भी काल तथा यम के भी यम हैं। वेद , वेदकर्ता तथा वेद -वेदांगों के पारंगत विद्वान् भी आप ही हैं ।।६।।
आप ही विद्वानों के जनक , विद्वान् तथा विद्वानों के गुरु हैं। आप ही मंत्र , जप , तप और उनके फलदाता है ।।७।।
आप ही वाक् और वाणी की अधिष्ठात्री देवी हैं। आप ही उनके सृष्टा और गुरु हैं। अहो ! सरस्वती बीजस्वरूप आपकी स्तुति यहां कौन कर सकता है ।.८। .
ऐसा कहकर गिरिराज हिमालय उन भगवान शिवजी के चरणकमलों को पकड़कर खड़े रहे। भगवान शिव ने वृषभ से उतरकर शैलराज को प्रबोध देकर वहाँ निवास किया ।९।।
जो मनुष्य तीनों समय इस परम् पुण्य व दिव्य स्तोत्र का पाठ करता है , वह भवसागर (संसाररूपी सागर )में रहकर भी समस्त पापों तथा भयों से मुक्त हो जाता है ।.१०।.
यदि किसी मनुष्य के पास पुत्र न हो तो वो अगर एक महीने तक इस सुंदर व दिव्य पाठ सुने या करे तो उसे पुत्र प्राप्ति अवश्य होती है। इसी तरह यदि कोई भार्याहीन है अथार्त जिस आदमी की शादी न हो रही वह इस का श्रवण करे तो उसे सुंदर व सुशील भार्या (पत्नी ) की प्राप्ति होती है ।.११।.
वह बहुत समय से खोयी हुई वस्तु को सरलता तथा अवश्य पा लेता है। जिस व्यक्ति का राज्य पूरी तरह नष्ट हो चुका हो या बहुत ऊँचे पद निचे गिर गया हो वह मनुष्य भगवान भोलेनाथ के आशीर्वाद से दुबारा उस राज्य व पद को प्राप्त कर लेता है ।.१२।.
कारागार , श्मशान और शत्रु संकट में पर तथा अत्यंत जल से भरे गंभीर जलाशय में नाव टूट जाने पर , विष खा लेने पर , महाभयंकर संग्राम के बीच फंस जानेपर तथा हिंसक जंतुओं के बीच घिर जानेपर इस स्तुति का पाठ करके मनुष्य भगवान शंकर की कृपा से समस्त भयों से मुक्त हो जाता है ।.१३ -१४।.
.।। इस प्रकार श्रीब्रह्मवैवर्तमहापुराणमें हिमालयकृत शिवस्तोत्र सम्पूर्ण हुआ ।।